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वॉशिंगटन, 18 जून (हि.स.)। अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को टेनेसी राज्य में ट्रांसजेंडर नाबालिगों के लिए जेंडर-परिवर्तन (जेंडर-अफर्मिंग) चिकित्सा सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून को बरकरार रखते हुए ट्रांसजेंडर समुदाय को झटका दिया है। यह फैसला 6-3 के बहुमत से आया है, जिसमें न्यायालय के रूढ़िवादी बहुमत ने इस कानून को संविधान सम्मत ठहराया।
प्रधान न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ने बहुमत की राय लिखते हुए कहा कि यह मामला चिकित्सा के एक उभरते क्षेत्र में गहन वैज्ञानिक और नीतिगत बहस से जुड़ा है और संविधान का समता संरक्षण खंड इन बहसों को हल करने का उपकरण नहीं है।
उन्होंने लिखा, “यह मामला गहन वैज्ञानिक बहसों और समाज पर गहरे प्रभावों से जुड़ा है। संविधान का समता संरक्षण खंड इन मतभेदों को हल नहीं करता और न ही हमें इन्हें हमारी मर्जी से तय करने का अधिकार देता है।”
इस फैसले के विरोध में न्यायमूर्ति सोनिया सोतोमयोर ने उदास स्वर में असहमति जताई। उन्होंने कहा, “यह निर्णय उन ट्रांसजेंडर बच्चों और उनके परिवारों को राजनीतिक रहमोकरम पर छोड़ देता है, जिन्हें न्याय की सबसे अधिक आवश्यकता है। मैं दुख के साथ असहमति जताती हूं।”
यह फैसला ऐसे समय आया है जब अमेरिका के कई राज्यों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों को सीमित करने के लिए नियम बनाए जा रहे हैं, जिनमें खेलों में भागीदारी, शौचालयों का उपयोग और चिकित्सा उपचार शामिल हैं। टेनेसी जैसा ही कानून अब तक अमेरिका के 26 राज्यों में पारित हो चुका है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने भी ट्रांसजेंडर नीतियों को कठोर बनाने के प्रयास किए हैं, जिसमें नाबालिगों के लिए जेंडर-अफर्मिंग केयर पर संघीय खर्च रोकना, ट्रांसजेंडर सैनिकों को सेना से बाहर करना और सेक्स की परिभाषा को केवल ‘पुरुष’ और ‘महिला’ तक सीमित करना शामिल है।
हालांकि वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि ट्रांसजेंडर और समलैंगिक व्यक्तियों को कार्यस्थल पर लिंग-आधारित भेदभाव से सुरक्षा प्राप्त है। बुधवार का फैसला उस फैसले को सीधे प्रभावित नहीं करता, लेकिन समान तर्क लागू न किए जाने से ट्रांसजेंडर अधिकारों को नुकसान पहुंचा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / आकाश कुमार राय