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कोलकाता, 17 जून (हि. स.)। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों की घोषणा अभी करीब आठ महीने दूर है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के बीच मतुआ वोट बैंक को लेकर खींचतान पहले ही शुरू हो चुकी है। मतुआ समुदाय के नेताओं के मुताबिक, राज्य में मतुआ समुदाय की कुल जनसंख्या करीब 2.5 से 2.75 करोड़ के बीच है, जबकि 1.8 करोड़ से अधिक वोटर मतुआ समाज से आते हैं।
मतुआ महासंघ के अनुसार, राज्य की 100 विधानसभा सीटों पर मतुआ वोटरों की उल्लेखनीय मौजूदगी है, जिनमें 21 सीटों पर तो वे बहुसंख्यक हैं। वहीं लोकसभा की 42 सीटों में से 12 में इस समाज का विशेष प्रभाव है, जिनमें बनगांव, रानाघाट, कृष्णनगर और बैरकपुर प्रमुख हैं।
1950 और 1960 के दशक में मतुआ समाज कांग्रेस के साथ खड़ा था और प्रमोथरंजन ठाकुर उस समय मंत्री भी बने थे। बाद में वाम मोर्चा ने मतुआ बहुल सीटों पर पकड़ बनाई। लेकिन 2009 से मतुआ वोट पर चर्चा तेज हुई, जब ममता बनर्जी ने खुद ठाकरबाड़ी में आना-जाना शुरू किया। तृणमूल ने धीरे-धीरे मतुआ वोट पर पकड़ बनाई और 2011 और 2014 में मनजुलकृष्ण और कपिलकृष्ण ठाकुर को उम्मीदवार बनाकर जीत हासिल की।
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2014 के बाद भाजपा की बढ़त, ठाकरबाड़ी में बंटवारा
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मतुआ बहुल बनगांव में 2.5 लाख वोट हासिल किए और 2015 के उपचुनाव में ममता बाला ठाकुर के खिलाफ उनके जेठ के बेटे सुब्रत ठाकुर भाजपा प्रत्याशी बने। भले ही वह न जीते, लेकिन भाजपा का वोट शेयर तीन लाख के पार चला गया।
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2021 में मतुआ प्रभाव वाले 21 में से नौ सीटें भाजपा के पास
2016 में तृणमूल ने मतुआ बहुल 21 में से 19 सीटें जीतीं, लेकिन 2021 में यह संख्या घटकर 12 रह गई और भाजपा को नौ सीटों पर सफलता मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव में बनगांव से शांतनु ठाकुर और रानाघाट से जगन्नाथ सरकार की जीत के बाद से मथुआ समाज में भाजपा की पकड़ और मजबूत होती गई।
तृणमूल अब दोबारा मतुआ समाज को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रही है। ममता बनर्जी ने ममता बाला ठाकुर को राज्यसभा भेजा और उनकी बेटी मधुपर्णा ठाकुर को उपचुनाव में टिकट देकर जीत दिलाई। साथ ही मतुआ विकास बोर्ड का गठन कर ममता बाला को इसकी अध्यक्ष बनाया गया।
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भाजपा ने मोर्चा संभाला, मतुआ महासंघ हुआ सक्रिय
भाजपा ने भी अब पूरी तैयारी कर ली है। पार्टी ने केंद्रीय मंत्री और ऑल इंडिया मतुआ महासंघ के अध्यक्ष शांतनु ठाकुर की अगुवाई में महासंघ को चुनावी मैदान में उतार दिया है। महासंघ के नेता तन्मय विश्वास और सुखेन्द्रनाथ गाइन जैसे नाम सक्रिय हो चुके हैं।
दरअसल मतुआ समुदाय का वोट बंगाल की सत्ता की चाबी बनता जा रहा है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि ठाकुरबाड़ी के भीतर और बाहर, कौन-सी पार्टी मतुआ समाज के विश्वास को अपने पक्ष में मोड़ पाने में सफल होती है।
हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर