पवन ऊर्जा क्षेत्र और तीन प्रमुख चुनौतियां
प्रतीकात्मक।


मुकुंद

देश में बिना बाधा के बिजली आपूर्ति में पवन ऊर्जा का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इस दिशा में मोदी सरकार पूरी ईमानदारी से प्रयासरत है। सरकार मानती है कि इस क्षेत्र में कई चुनौतियां हैं। इनसे पार पाने के बाद ही स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता है। केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जामंत्री प्रह्लाद जोशी ने 15 जून को बेंगलुरु में वैश्विक पवन ऊर्जा दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में पवन ऊर्जा क्षेत्र के लिए तीन चुनौतियों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि सबसे पहले, हमें 24 घंटे बिजली और ग्रिड स्थिरता प्रदान करने के लिए पवन को सौर और भंडारण (बीईएसएस) के साथ जोड़ना होगा। दूसरा, शुल्क प्रतिस्पर्धी होना चाहिए। 3.90 रुपये प्रति यूनिट की दर बहुत अधिक है। हमें लागत कम करने के लिए मिलकर काम करना होगा। तीसरा, घरेलू विनिर्माण को और अधिक कुशल बनना होगा। साथ ही अपने लक्ष्यों को पूरा करने के साथ निर्यात को प्रोत्साहन भी देना होगा।

वैश्विक पवन ऊर्जा दिवस पर आयोजित सम्मेलन के संदर्भ में भारत सरकार के पत्र एवं सूचना कार्यालय (पीआईबी) की विज्ञप्ति में कहा गया है कि केंद्र सरकार के निरंतर नीतिगत समर्थन से पवन ऊर्जा क्षेत्र ने पर्याप्त वृद्धि प्रदर्शित की है। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के तत्वावधान में बेंगलुरु में आयोजित कार्यक्रम में केंद्र और राज्य सरकार के प्राधिकरणों, डिस्कॉम, सीपीएसयू, पवन उद्योग, शिक्षाविदों, प्रमुख विचारकों, प्रमुख हितधारकों आदि की भागीदारी से देश में पवन ऊर्जा विकास की प्रगति सहित प्रमुख पहलुओं पर चर्चा की गई।

इस कार्यक्रम में पवन स्वतंत्र विद्युत उत्पादक संघ (डब्ल्यूआईपीपीए), भारतीय पवन टरबाइन निर्माता संघ (आईडब्ल्यूटीएमए) और भारतीय पवन ऊर्जा संघ (आईडब्ल्यूपीए) का भी सहयोग रहा। केंद्रीयमंत्री जोशी ने कार्यक्रम में मौजूद हितधारकों को संबोधित किया। उन्होंने सभी को आश्वस्त किया कि पवन ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के लिए भारत की रणनीति के केंद्र में है। जोशी ने कहा कि वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने के लिए भारत को ऊर्जा की अधिक आवश्यकता है, चाहे वह सौर ऊर्जा हो, पवन ऊर्जा हो या ऊर्जा का कोई अन्य स्वरूप हो।

कार्यक्रम में जोशी ने यह कहकर चिंता कम की कि भारत के राष्ट्रीय लक्ष्य महत्वाकांक्षी और स्पष्ट हैं। वर्ष 2030 तक हमारी बिजली क्षमता का 50 प्रतिशत हिस्सा गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से होगा। वर्ष 2070 तक भारत शून्य कार्बन उत्सर्जन वाला देश बन जाएगा। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के में पवन ऊर्जा की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होगी। पवन ऊर्जा अक्षय ऊर्जा रणनीति का घटक नहीं है, लेकिन यह इसके दिल में है और आत्मनिर्भर भारत के केंद्र में है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हमें 'विनिर्माण के लिए अक्षय ऊर्जा और घरेलू खपत के लिए पारंपरिक ऊर्जा' का एक दृष्टिकोण दिया है। हम उसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण अक्षय ऊर्जा उत्पादन, भंडारण और उपयोग के महत्व पर बल देता है, ताकि जब भारत निकट भविष्य में वैश्विक विनिर्माण केंद्र बन जाए, तो वह अक्षय ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से विनिर्माण क्षेत्र की ऊर्जा मांगों को पूरा करने में सक्षम हो सके।

जोशी ने कहा कि भारत में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं, क्योंकि इसकी विश्व स्तर पर चौथी सबसे बड़ी पवन ऊर्जा स्थापित क्षमता है और यह तीसरा सबसे बड़ा अक्षय ऊर्जा उत्पादक है। उन्होंने कहा कि किसी ने नहीं सोचा था कि भारत 10 वर्ष में अक्षय ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन जाएगा, लेकिन आज यह एक वास्तविकता है। सरकार इस क्षेत्र को पूरी गंभीरता से सहायता प्रदान कर रही है। इस वर्ष अक्षय ऊर्जा बजट में 53 प्रतिशत यानी 26,549 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है। इसमें से एक बड़ा हिस्सा पवन ऊर्जा को दिया गया है। उन्होंने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग की ओर संक्रमण अपरिहार्य है। राज्यों को इस संक्रमण का नेतृत्व करना चाहिए। भूमि की उपलब्धता और पारेषण में देरी को दूर करना होगा। यह संकोच का समय नहीं है, यह कार्यान्वयन का समय है।

उन्होंने कहा कि यह गर्व की बात है कि भारत 225 किलोवाट से लेकर 5.2 मेगावाट तक की क्षमता वाले पवन टर्बाइनों का निर्माण कर रहा है। इसमें 14 कंपनियां 33 मॉडल तैयार कर रही हैं। यह टर्बाइन हमारी घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और वैश्विक स्तर पर लागत-प्रतिस्पर्धी भी हैं। जोशी का मानना है कि राष्ट्रीय पवन ऊर्जा क्षमता का पूरी तरह से उपयोग करने के लिए समन्वित राष्ट्रीय प्रयास की आवश्यकता होगी। इसलिए हम पांच प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

इसके तहत मध्य प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा जैसे नए राज्यों में विस्तार किया जाएगा। गुजरात और तमिलनाडु में चार गीगावाट के लीजिंग क्षेत्रों की पहचान की जाएगी। भंडारण से जुड़े व्यावसायिक मॉडलों के माध्यम से चौबीसों घंटे चलने वाली और दृढ़ हरित ऊर्जा रणनीतियों में पवन ऊर्जा को एकीकृत किया जाएगा। ग्रिड का आधुनिकीकरण किया जाएगा। परिवर्तनशील नवीकरणीय ऊर्जा के प्रबंधन के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई)-आधारित पूर्वानुमान में निवेश किया जाएगा। पूरी पवन ऊर्जा मूल्य शृंखला में स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन समय की जरूरत है। जोशी ने कार्यक्रम में पवन ऊर्जा रूपरेखा और विनिर्माण कार्ययोजना पर रिपोर्ट भी जारी की। इस रिपोर्ट में मजबूत और आत्मनिर्भर पवन ऊर्जा इको सिस्टम पर भी जोर दिया गया है। उन्होंने सुखद यह है कि कर्नाटक 1331.48 मेगावाट की पवन ऊर्जा क्षमता वृद्धि के साथ पहले स्थान पर है। इसके बाद तमिलनाडु (1136.37 मेगावाट) और गुजरात (954.76 मेगावाट) का स्थान है।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद