मृत्युदंड माफी आदेश की अनदेखी पर हाईकोर्ट सख्त, राज्य सरकार को भेजा नोटिस
राज्य सरकार द्वारा हाई कोर्ट के आदेश पर अनदेखी


कोलकाता, 15 जून (हि. स.)।

राज्य सरकार द्वारा मृत्युदंड की सजा पा चुके एक कैदी को रिहा करने में असफल रहने पर कोलकाता हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से सवाल उठाया है कि जब डेथ सेंटेंस रिव्यू बोर्ड द्वारा रिहाई का आदेश दिया जा चुका है, तो फिर राज्य के कानून विभाग ने अब तक आदेश का पालन क्यों नहीं किया।

मामला समीर दास उर्फ कैबला नामक एक सजायाफ्ता कैदी का है, जो पिछले 20 वर्षो से जेल में बंद है। रिव्यू बोर्ड ने उन्हें 18 अप्रैल 2024 को रिहा करने का आदेश दिया था। बावजूद इसके, अब तक उन्हें जेल से मुक्त नहीं किया गया है। इस देरी को लेकर अब कैदी ने अदालत की शरण ली है।

न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य की एकल पीठ ने इस संबंध में राज्य के कानून और न्याय विभाग के सचिव को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। अदालत ने पूछा है कि रिहाई का स्पष्ट निर्देश होने के बावजूद अब तक कैदी को क्यों नहीं छोड़ा गया। न्यायालय ने सचिव के खिलाफ रूल इश्यू करते हुए अगली सुनवाई की तारीख 27 जून निर्धारित की है।

राज्य सरकार की ओर से पेश सरकारी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि समीर दास वर्तमान में 60 वर्ष के हैं और उनके खिलाफ आरोप बेहद गंभीर प्रकृति के हैं, अतः उन्हें रिहा नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, वकील ने यह भी कहा कि उनके परिजन भी उनकी रिहाई के पक्ष में नहीं हैं।

समीर दास के वकीलों ने इन दावों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि परिवार ने खुद उनकी रिहाई की मांग की है और उन्हें सम्मानपूर्वक घर लौटाने को तैयार है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की ओर से अदालत को भ्रामक जानकारी दी जा रही है।

उधर, सुधारगृह अधीक्षक की रिपोर्ट में समीर दास के आचरण को अनुकरणीय बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने जेल में अपने सभी दायित्वों का पालन निष्ठा से किया, अन्य कैदियों और जेल अधिकारियों के साथ व्यवहार में भी कोई शिकायत नहीं पाई गई।

समीर दास के वकीलों का सवाल है कि जब कैदी का आचरण संतोषजनक है, परिवार रिहाई के पक्ष में है और बोर्ड से अनुमति भी मिल चुकी है, तो फिर 20 वर्षो की सजा काट चुके व्यक्ति को रिहा करने में देरी क्यों? राज्य सरकार इस मामले को गंभीरता से क्यों नहीं ले रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार / अनिता राय