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मंडी, 15 जून (हि.स.)। राजकीय वल्लभ कालेज मंडी की वनस्पति विज्ञान की प्राध्यापक डा. तारा सेन का कहना है कि बढ़ती उम्र, जीवनशैली की अनियमितताएं और शरीर की उचित देखभाल न करने से आजकल युवा वर्ग से लेकर वृद्धजनों तक जोड़ों के दर्द और आर्थराइटिस की समस्याएं आम होती जा रही है। ऐसे में यदि हम आयुर्वेदिक ज्ञान और परंपरागत घरेलू उपायों की ओर लौटें, तो हम न केवल राहत पा सकते हैं, बल्कि स्वास्थ्य की रक्षा भी कर सकते हैं।
उनका कहना है कि उत्तर भारत में रहने वाले लोगों को प्रायः विटामिन की कमी विशेषकर विटामिन डी की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे कैल्शियम का अवशोषण बाधित होता है और यह जोड़ों के दर्द का एक प्रमुख कारण बन जाता है। ऐसे में सुबह की हल्की धूप में बैठकर जड़ी-बूटियों से युक्त तेल की नियमित मालिश न केवल विटामिन डी की कमी को दूर करने में सहायक होती है, बल्कि धीरे-धीरे जोड़ों के दर्द में भी राहत देती है।
उनका कहना है कि उनके द्वारा एक प्रभावशाली जड़ी-बूटी आधारित तेल बनाने की विधि, जो तिल और सरसों के तेल को आधार बनाकर तैयार किया गया है। इसमें प्रयोग की गई सभी सामग्री प्राकृतिक, घरेलू और दर्द निवारक गुणों से भरपूर है। जड़ी-बूटी आधारित तेल बनाने की विधि, जो तिल और सरसों के तेल को आधार बनाकर तैयार किया गया है। इसमें प्रयोग की गई सभी सामग्री प्राकृतिक, घरेलू और दर्द निवारक गुणों से भरपूर है। एक किलो हर्बल तेल के लिए पांच सौ ग्राम तिल का तेल लें इसकी गर्म प्रकृति, त्वचा में गहराई तक प्रवेश कर सूजन कम करता है, पांच सौ ग्राम सरसों का तेल लें यह वातशामक, सूजनरोधी, नसों को आराम देता है। इसके अलावा पचास ग्राम कुचली हुई निर्गुंडी की पत्तियां लें, यह संधियों की सूजन, दर्द, जकड़न में उपयोगी है, 30 ग्राम अश्वगंधा की पत्तियां लें, यह नसों को मज़बूती देता है, तनाव कम करता है, 30 ग्राम करी पत्ता, यह रक्त संचार में सुधार और हड्डियों को मज़बूत करता है। इसके अलावा 30 ग्राम अरंडी के पत्ते जो सूजन में लाभकारी, वात विकार को शांत करता है, 19-12 लहसुन की कलियां, लहसुन वात और जकड़न दूर करता है, दो चम्मच अजवायन, सूजन और दर्द निवारक, त्वचा को गर्मी देता है, दो चम्मच सौंठ, संधियों में गर्माहट लाकर दर्द कम करता है, पचास ग्राम कछदूकस की हुई कच्ची हल्दी, सूजन व दर्द निवारण में रामबाण, दो चम्मच मेथी के बीज, ये सूजन कम करता है, वातनाशक, हड्डियों को मज़बूती देता है। तेल ठंडा होने पर 10-12 ग्राम कपूर मिलाएं, कपूर स्नायुओं को ठंडक देकर तात्कालिक राहत, सूजन व जलन में उपयोगी।
बनाने की विधि
सभी हर्बल सामग्री को साफ़ करके अच्छी तरह कूट लें या दरदरा पीस लें। तिल और सरसों के तेल को मिलाकर किसी कांच या स्टील के बर्तन में रखें। इसमें उपरोक्त सभी पिसी हुई हर्बल सामग्री डालें और अच्छी तरह मिलाएं। इस मिश्रण को एक साफ़ और चौड़े मुंह वाले बर्तन में भरकर मलमल के कपड़े से ढंक दें। तेल को दो दिनों तक पूरी धूप में रखें, ताकि सूरज की ऊर्जा से तेल में जड़ी-बूटियों के गुण अच्छी तरह उतर जाएं। तीसरे दिन, इस तेल को धीमी आंच पर 45 मिनट तक उबालें, जब तक सारा जलवाष्प निकल न जाए और तेल से तेज़ सुगंध आने लगे। जब तेल हल्का गुनगुना रह जाए, पूरी तरह ठंडा नहीं, उसमें 10-12 ग्राम कपूर मिला दें और अच्छे से घोलें। कपूर से तेल में ठंडक, सूजनरोधी और दर्दनिवारक गुण और बढ़ जाते हैं। ठंडा होने पर छानकर कांच की बोतलों में भर लें।
प्रयोग की विधि
जोड़ों के दर्द, आर्थराइटिस या पीठ दर्द से परेशान व्यक्ति इस तेल को सुबह के समय धूप में बैठकर हल्के हाथों से जोड़ों, घुटनों, पीठ और पैरों पर लगाएं। हर दिन नियमित रूप से मालिश करने से लाभ मिलेगा। सामान्य या युवा व्यक्ति रविवार को सप्ताह में एक बार इसे लगाकर रोगों से बचाव कर सकते हैं। मालिश के बाद 20-30 मिनट धूप में बैठना फायदेमंद होता है।
क्यों है यह तेल विशेष
यह तेल वातशामक, सूजनरोधी और दर्द निवारक गुणों से भरपूर है। यह रक्त संचार बढ़ाता है, सूजे हुए हिस्सों को शांत करता है और जोड़ों की गतिशीलता को बेहतर बनाता है। रसायनों से मुक्त और 100 प्रतिशत प्राकृतिक होने के कारण इसे बिना किसी डर के प्रयोग में लाया जा सकता है।
उपचार से बेहतर है बचाव
यदि हम समय रहते शरीर की देखभाल करें तो आर्थराइटिस और जोड़ों के दर्द जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है। यह तेल घर पर भी आसानी से बनाया जा सकता है और महिलाओं द्वारा स्वयं सहायता समूह के माध्यम से स्थानीय बाज़ारों में भी बेचा जा सकता है, जिससे आय का स्रोत भी बन सकता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / मुरारी शर्मा