मंडी जनपद में धूमधाम से मनाया गया बकरयाला साजा , ऐतिहासिक कमरूनाग झील में लगा मेला
कमरूनाग झील परिसर में लगा सरानाहुली मेला।


मंडी, 15 जून (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश के मंडी जनपद मे स्थित कमरुनाग झील एक खूबसूरत पावन स्थली है।लगभग आधा किलोमीटर की परिधि में फैली इस झील के तट पर पांडवों के ठाकुर कमरुनाग जी का पहाड़ी शैली में बना लघु लेकिन बहुत ही साधारण व सुंदर मंदिर है।कमरुनाग परिसर का सौदर्य अनुपम है। आज श्रद्धालुओ ने आज अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने पर पहले कमरुदेव के मंदिर मे स्थापित कमरुदेव की पूजा-अर्चना की फिर झील में विराजमान कमरुनाग जी की पूजा कर सोना-चांदी-सिक्कों के रुप में अपनी मन्नौतियां भेंट के रूप में झील में अर्पित की। विश्व में प्रसिद्ध कमरुनाग तीर्थ स्थान की महिमा अद्भुत है।

सुकेत संस्कृति साहित्य एवम जन कल्याण मंच के अध्यक्ष डाॅक्टर हिमेंद्र बाली का कहना है कि वृत्र का पृथ्वी पर जल पर अधिकार था। इंद्र ने छल से वृत्र का वध कर शतद्रु व आरिजिकीया नदियों को मुक्त किया। नागों का हिमाचल में देव रूप में अस्तित्व इस बात का प्रमाण है कि नाग शांतिप्रिय व बलशाली जाति रही है जिन्होने अपनी भूमि की रक्षा के लिये युयुत्सु आर्य शासकों से घोर संघर्ष किया। मंडी जिले में भी नागों के शौर्य व लोकोपकारक प्रवृति के दिग्दर्शन होे हैं। मंडी जिला के सशक्त देव कमरूनाग अपनी अतुल शक्ति के कारण बड़ा देव अर्थात् बड़े देवता कहलाते हैं। बड़ादेव कमरुनाग से अनेक आश्चर्यजनक सत्य घटनाएं व परंपराएं जुड़ी हैं।कमरुनाग जी से जुड़ा इतिहास जहां अनूठा है वहीं इनकी पूजा से जुड़ी परंपरागत भी अनूठी हैं।संस्कृति मर्मज्ञ डाॅक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि आषाढ़ संक्रांति का यह दिन बकरयाला साजा के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष भी बकरयाला साजा पांगणा करसोग मंडी ही नहीं अपितु कमरुनाग के प्रदेश-देश और विदेशों में फल-फूल रहे भक्तों द्वारा परंपरागत तरीके से अपने-अपने घरों में भी धूमधाम से मनाया गया। इस दिन स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत होकर ब्रत रखकर पूजा स्थल में कमरुदेव जी की उच्चासन पर स्थापना कर इसके समक्ष एक थाली मे जल भरकर इसमें कमरुनाग झील की प्रतिकृति की स्थापना करके इस जल में पठावा देवदार के परागकण,पुष्प अर्पित किए गए। शुष्क मेवों की आटे से बनी-तलकर तैयार की गई प्राकों,हलवा,आम,बादाम, खुमानी आदि ऋतु फल श्री विग्रह के आगे तथा दान राशि झील की प्रतिकृति में अर्पित की गई। तदपश्चात स्थापना स्थल पर गेंहू की नई फसल के आटे के बने दो बकरों की स्थापना कर कमरुदेव को भोग लगाते हुए पुष्प,धूप-दीप से आरती करने के बाद इन बकरों की कमरुदेव ,ग्राम देव को बलि दी गई। आटे से बने इन बकरो की कमरुनाग जी व ग्राम देव जी के सम्मान में बलि देने के कारण ही आषाढ़ संक्रांति को मंडी जिला में बकरयाला साजा भी कहते हैं।

कमरुनाग के पूर्व कटवाल व कमरुदेव क्षेत्र मे स्वच्छता कार्यक्रम के अग्रणी समाज सेवी निर्मल सिंह का कहना है कि हर घर के पूजा स्थल में की गई इस स्थापना व पूजा-अर्चना से कमरुदेव जी अंशरुप में हर घर में आकर निवास कर अपना आशीर्वाद देते हैं।मान्यता है कि पूजा स्थल में स्थापित कमरुदेव जी को आटे के बने बकरों की बलि देने और थाली को कमरुनाग की झील के रुप स्थापित जल में सोना-चांदी और सिक्के अर्पित करने से समस्त पाप-ताप नष्ट होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।कमरुदेव जी की ऐसी परंपरा अत्यंत फलदायक मानी गई है।कमरुदेव व कमरु नाग जी की इस अनूठी रस्म को विधि-विधानों का द्वारा श्रद्धा-विश्वासपूर्वक घरों में पूरी करने से कमरुनाग स्थल की यात्रा,दर्शन-पूजन,अर्चन के तुल्य लाभ तो मिलता ही है साथ ही कमरुदेव जी के साक्षात दर्शन की रोमांचक अनुभूति भी होती है।अधिकतर श्रद्घालु अपने घरों में कमरुदेव जी की पूजा के बाद आटे के बने बकरे के टुकड़ों/एक-एक प्राक को नैवेद्य रुप में परिवार के सभी सदस्यों को बांटा जाता है। इनको आटे में गुड़,मीठी सौंफ,गरी,दाख, छुआरे या नमक अजवाइन मिली तली रोटियां/बाबरुओं और गाय के दूध के साथ खाया जाता है तथा बन्धु-बान्धवो को खिलाया जाता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / मुरारी शर्मा