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हृदयनारायण दीक्षित
दुनिया को सुखी बनाने के काम में अनेक महानुभाव सक्रिय रहे हैं और आज भी हैं। वे आदर के पात्र होते हैं। हम उनकी चर्चा करते हैं। उनकी यश और कीर्ति यत्र सर्वत्र फैलती है। कुछ महानायक जैसे होते हैं और कुछ महापुरुष जैसे। ऐसे व्यक्तित्व बहुत सरल नहीं होते। हम उन्हें आसानी से नहीं समझ सकते। हमारे पास उन्हें समझने और जानने के लिए लेख और भाषण की सामग्री ही होती है।
खलील जिब्रान लेबनानी विद्रोही नेता थे। उन्होंने विशेष शैली में 12 पुस्तकें लिखीं। ’दि प्रॉफेट’ नाम की उनकी किताब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हुई थी। शेक्सपियर का लेखन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय है। उनके लेखन का द्वंद्व तत्व विचारणीय है। महात्मा गांधी का व्यक्तित्व समझने की दृष्टि से बहुत जटिल है। वे राजनीति में सक्रिय रहते हैं, कोई पद नहीं लेते। लेकिन कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव में भी सक्रिय भूमिका का निर्वाहन करते हैं। अपने आदर्शों के लिए सत्याग्रह करते हैं। गांधी को आसानी से नहीं समझा जा सकता। गांधी का लिखा और बोला साहित्य हमें उनके निकट ले जाता है।
डॉ. बी० आर० आम्बेडकर का लिखा बोला साहित्य पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। हम उनके साहित्य को पढ़कर, उनके व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ जान जाते हैं। गांधी जी ’हरिजन’ और ’यंग इण्डिया’ में नियमित लिखते थे। डा. आम्बेडकर का अपना अखबार ’मूकनायक’ था। वे उसमें लिखते थे। लोडिया ’मैनकाइंड’ में लिखते थे। उनकी लिखी ’भारत माता’, ’धरती माता’, ’इकोनॉमिक्स बियोंड मार्क्स’ और ’इतिहास चक्र’ जैसी पुस्तकें उनके व्यक्तित्व की खबर देती हैं। दीनदयाल उपाध्याय ’ऑर्गनाइजर’ में पॉलिटिकल डायरी लिखते थे।
असली बात है अभिव्यक्ति का स्रोत। ब्रह्माण्ड सतत् विस्तारवान है। वह स्वयं को भिन्न भिन्न रूपों में प्रकट करता रहता है। प्रकृति की परिवर्तनशीलता ब्रह्म अभिव्यक्ति का परिणाम है। ज्ञान की विशेष अवस्था में ज्ञाता और ज्ञान एक हो जाते हैं। प्रकृति अनेक लेखकों की प्रेरणा का स्रोत है। किसी को नदियां पर्वत आनंदित प्रेरित करते हैं, तो किसी किसी को सूर्य चन्द्र आदि प्रकाशमान दिव्यता प्रभावित करती है। सूर्य के प्रभाव में वनस्पतियां प्रकाश संश्लेषण करती हैं। चन्द्रमा विराट ब्रह्माण्ड का ‘मन‘ है।
लेखन प्रायः स्वअंतस की उथल पुथल का परिणाम होता है। शंकराचार्य ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय ख्याति के महान दार्थनिक थे। उनके व्यक्तित्व की थाह पाना बहुत कठिन है। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक एकता के लिए काम किया। विश्व चिंतन दर्शन में अनूठा हस्तक्षेप किया। सारी दुनिया में भारतीय धर्म दर्शन की पताका फहराई। वे लगातार चलते रहे। बोलते रहे और लगातार लिखते भी रहे। उनका लेखन प्रवचन आश्चर्यचकित करता है। मोटे तौर पर शंकराचार्य के लगभग 200 ग्रंथ बताए जाते हैं। विद्वानों का मत है कि परवर्ती शंकराचार्यों ने भी अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे, लेकिन आदि शंकराचार्य के लेखन की अपनी तर्कपूर्ण शैली थी। उनकी लेखनी में चमत्कार था।
डॉक्टर जयराम मिश्र ने ’आदि शंकराचार्य जीवन और दर्शन’ (पृष्ठ 216) में लिखा है, ”आदि शंकराचार्य द्वारा लिखित ग्रंथों को हम चार भागों में बांट सकते हैं। पहला भाष्य ग्रंथ, दूसरा स्तोत्र ग्रंथ, तीसरा प्रकरण ग्रंथ और चैथा तंत्र ग्रंथ।” आचार्य के लिखे भाष्य ग्रंथों की दो श्रेणियां हैं। पहली प्रस्थानत्रयी का भाष्य और दूसरे अन्य ग्रंथों के भाष्य। प्रस्थानत्रयी में प्रस्थान का अर्थ मार्ग में गति है और त्रयी का अर्थ है तीन। प्रस्थान के तीन मार्ग बताए गए हैं। पहला ब्रह्मसूत्र, दूसरा स्मृति अर्थात भगवद्गीता, तीसरा उपनिषद। यही तीन मार्ग हैं। जयराम मिश्र ने बताया है कि, ”शंकराचार्य ने प्रस्थानत्रयी के तीनों मार्गों पर टीकाएं लिखी हैं।” प्रस्थानत्रयी में ब्रह्मसूत्र भी आता है। शंकराचार्य के ब्रह्मसूत्र पर लिखे भाष्य को विद्वानों द्वारा सराहा गया है। आचार्य ने ब्रह्मसूत्र जैसी संक्षिप्त और जटिल रचना को बड़े सरल और तरल शैली में समझाया है। भाषा में प्रसाद है।
वाचस्पति मिश्र प्रतिष्ठित विद्वान ने शंकर के भाष्य की सराहना की है। इसी तरह श्रीमद्भगवद्गीता के भाष्य में आचार्य शंकर ने गीता की निवृत्तिमूलक और ज्ञानपरक व्याख्या की है। उन्होंने इस भाष्य में यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति केवल ’तत्वज्ञान’ से ही होती है, ज्ञान और कर्म के समुच्चय से नहीं। गीता पर अनेक भाष्य हैं, लेकिन इस भाष्य में उन्होंने कर्म के सिद्धान्तों का खण्डन किया है।
साहित्य समाज का दर्पण होता है। लेखक की शब्द देह होता है। समाज की महत्वाकांक्षा और स्वप्न साहित्य में ही प्रकट होते हैं। विश्व की सभी संस्कृतियों के इतिहास में लेखन और विचार अभिव्यक्ति का सम्मान रहा है। छापे खाने और लिपि के अविष्कार के बाद विश्व साहित्य के इतिहास में क्रांतिकारी परिवर्तन आए हैं। भारतीय संस्कृति अति प्राचीन है इसलिए साहित्य भी अतिप्राचीन है। यहाँ विपुल साहित्य का सृजन हुआ है। केवल ऋग्वेद में ही साढ़े दस हजार मंत्र हैं। महाभारत के कई संस्करण हैं। इसमें 90 हजार श्लोक बताए जाते हैं। वाल्मीकि की लिखी रामायण में लगभग 25 हजार श्लोक हैं। फिर ब्राह्मण आरण्यक भी वृहदाकार है। यहाँ बृहदारण्यक उपनिषद भी है। ऐसा समृद्ध साहित्य दुनिया की किसी भी संस्कृति में नहीं है।
जीवन जगत् रहस्यपूर्ण है। विराट अस्तित्व का बोध जटिल है। अनेक प्रश्न और जिज्ञासाएं हैं। भारतीय चिंतन में प्रायः सभी प्रश्नों पर विचार हुआ है। प्रश्न बेचैनी बढ़ती रहती है, तो हम उत्तर पाने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। मैं जिज्ञासु हूँ। अच्छी बात है, लेकिन क्यों हूँ जिज्ञासु? यह प्रश्न स्वयं के विवेचन या आत्मचिंतन से ही जुड़ा है। जान पड़ता है कि जिज्ञासा और प्रश्नाकुलता लेकर ही हम जन्मे हैं। महापुरुषों के लेखन में अनेक जिज्ञासाओं के समाधान हैं। सतत् अध्ययन का विकल्प नहीं है। अमेरिकी भाषा विज्ञानी नोम चोम्सकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा वाले विद्वान ने अनेक ग्रंथ लिखे हैं। इनमें अमेरिकी समाज के मूल्यों में गिरावट का वर्णन है। पुस्तकों से चोम्सकी की मानसिक बौद्धिक उथल पुथल का सहज अनुमान संभव है।
कुछ आधारभूत प्रश्न हैं। सबके चित्त में उगते हैं। जैसे विराट अस्तित्व किसकी रचना है? क्या स्वयंभू है? सदा से है? क्या इसका कोई सर्जक है? ऋग्वेद के एक ऋषि की जिज्ञासा है कि हम ऐसे किस देव की उपासना करें-कस्मे देवाय हविषा विधेम? ईश्वर इसी जिज्ञासा का विषय है। भौतिकवादी मित्र कहेंगे कि यह प्रत्यक्ष जगत् से परे मेटाफिजिकल अधिभौतिक चर्चा है।
आइए भौतिकवादी प्रश्नावली पर विचार करते हैं। ऋग्वेद में सूर्य से प्रश्न है कि आप बिना किसी आधार के कैसे लटके हैं? महाभारत में युधिष्ठिर से प्रश्न है कि जीवन मार्ग क्या है? कः पंथा? उत्तर कुछ बड़ा है, ”वेद वचन ढेर सारे। तर्क से बात नहीं बनती। ऋषि अनेक हैं। धर्म तत्व गूढ़ है। इसलिए महापुरुषों का मार्ग ही श्रेयस्कर है-महाजनो येन गता स पंथः।” शंकराचार्य ने सीधे प्रश्न का सीधा उत्तर दिया, ”ब्रह्म सत्य है। ज्ञान ही एकमेव मार्ग है।” उन्होंने अपनी वैचारिक स्थापना के लिए तमाम पुस्तकें लिखी थीं। साहित्य ज्ञान मार्ग के दुख से छुटकारे का रसायन है।”
(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश