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जोधपुर, 14 जून (हि.स.)। भारतीय सभ्यता मात्र एक भौगोलिक सीमा तक ही सीमित नहीं रही, इसका प्रभाव विश्वभर की संस्कृतियों पर पड़ा। वेद, पुराण, योग, आयुर्वेद, कला, साहित्य, शिल्प, वास्तुकला सहित जीवन जीने की आदर्श पद्धति ने असंख्य देशों, सभ्यताओं और जनजातियों पर अपनी गहरी छाप छोड़ी। विश्व हिन्दू परिषद् जोधपुर प्रान्त स्तरीय प्रशिक्षण वर्ग में भाग ले रहे शिक्षार्थियों को विहिप प्रान्त सह मंत्री महेन्द्र सिंह राजपुरोहित ने भारतीय संस्कृति का विश्व में युगों से फैलाव व संचार विषय पर उद्बोधन देते हुए उक्त विचार रखे।
राजपुरोहित ने उदाहरण दिया कि पूर्व एशियाई देशों, मध्य एशिया, यूरोप तक भारतीय ज्ञान, परंपरा और जीवन-मूल्य पहुंचे, जिसने उनके धर्म, जीवनदृष्टि और शासन प्रणाली तक प्रभावित किया। यह दर्शाता है कि भारतीय सभ्यता ने शांति, एकात्मता, सहिष्णुता, परोपकार, ज्ञान व साधना की अनुपम भेंट व प्रेरणा विश्व को दी।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति ने विश्व को ज्ञान, विज्ञान, कला सहित उत्कृष्ट जीवन पद्धति दी। इसका प्रभाव अनेक देशों की मूल परंपरा, भाषा, भूषा तक आया, जो उनके जीवन जीने, त्योहार मनाने, वेशभूषा अपनाने तक परिलक्षित होता है। इसका प्रमाण हमें अनेक स्थलों पर मिलने वाले शिलालेख, ग्रन्थ, प्रतीक चिह्न व परंपराओं से भी मिलता है।
हमारी सांस्कृतिक सीमाएं विशाल थीं, वर्तमान के अनेक देश जम्बूद्वीप भारतवर्ष के अभिन्न भौगोलिक भाग थे। आज वे राजनीतिक रूप से भिन्न इकाई जरूर हैं, परन्तु सांस्कृतिक रूप से वे हमारे ही अटूट अंग रहे हैं। उन्होंने आह्वान किया कि हम अपनी श्रेष्ठ सांस्कृतिक परंपरा का गौरवबोध अनुभव कर सभी को इसकी जानकारी दे जिससे नई पीढ़ी को इसका गर्व हो सके।
विश्व हिन्दू परिषद के प्रान्त प्रचार-प्रसार प्रमुख अमित पाराशर ने बताया कि सत्र के आरम्भ में देव प्रतिमाओं के समक्ष दीप प्रज्वलित किया गया। वर्ग बौद्धिक प्रमुख नरेन्द्र भोजक ने वर्ग प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश