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जम्मू, 14 जून (हि.स.)। आज के दिन देश उस महान सपूत को नमन करता है जिसने 1947 में पाकिस्तान की कश्मीर पर कब्जा करने की साजिश को विफल कर दिया। ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह, जिन्हें जम्मू-कश्मीर का रक्षक कहा जाता है, ने मात्र 100 सैनिकों के बल पर 6000 की संख्या वाले पाकिस्तानी हमलावरों को चार दिन तक रोके रखा और राज्य को भारत में विलय के लिए समय दिलाया।
ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह का जन्म 14 जून 1899 को जम्मू से 35 किमी दूर बांगूणा गांव (अब राजिंदरपुरा) में हुआ था। वह जम्वाल वंश के थे, जिनका इतिहास वीरता और बलिदान से भरा रहा है। उनके पूर्वज जनरल बाज सिंह ने चित्राल की रक्षा करते हुए प्राणों की आहुति दी थी। उनके पिता सुबेदार लखा सिंह और चाचा ले. कर्नल गोविंद सिंह, दोनों सैन्य परंपरा से जुड़े थे। राजिंदर सिंह ने 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स कॉलेज से स्नातक कर राज्य सेना में अधिकारी के रूप में करियर शुरू किया और 1942 तक ब्रिगेडियर पद तक पहुँच गए।
24 सितंबर 1947 को उन्होंने राज्य सेना के चीफ ऑफ स्टाफ का कार्यभार संभाला। जब 21-22 अक्टूबर की रात पाकिस्तान ने मुजफ्फराबाद-उड़ी सेक्टर से हमला किया तब उन्होंने कमान संभालते हुए श्रीनगर से 100 सैनिकों के साथ उड़ी की ओर कूच किया। 23 से 27 अक्टूबर तक उन्होंने गढ़ी, महूरा, और बुनियार में मोर्चा लिया, भारी बारिश और कम संसाधनों के बावजूद दुश्मन को जबरदस्त क्षति पहुंचाई। उन्होंने उड़ी पुल को 24 अक्टूबर को उड़ा दिया, जिससे दुश्मन की गाड़ियों की गति ठहर गई। 26 अक्टूबर को घायल होने के बावजूद वे लड़ते रहे और अपने अंतिम समय तक सैनिकों को प्रेरित करते रहे। उनके इस अभूतपूर्व साहसिक अभियान ने महाराजा हरि सिंह को भारत से मदद लेने और विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने का अवसर प्रदान किया। देश की आज़ादी के बाद उन्हें भारत के पहले वीरता पुरस्कार महावीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया।
आज उनके नाम पर जम्मू में ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह चौक, ऑडिटोरियम, पार्क और बाजार उनकी याद को अमर बनाए हुए हैं। कश्मीर की रक्षा के इस अमर नायक को उनकी जयंती पर समस्त देश कृतज्ञता और श्रद्धा के साथ नमन करता है।
हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा