Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
- चम्बल अभ्यारण्य में निर्मित 4 अस्थाई हैचरी में पांच हजार अण्डों से निकलेंगे नवजात
मुरैना, 14 जून (हि.स.)। राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य में विलुप्तप्राय कछुआ की दो प्रजातियों का संरक्षण किया जा रहा है। इस वर्ष प्राकृतिक वातावरण में निर्मित कृत्रिम हैचरी से लगभग एक हजार से अधिक नवजात कछुआ काे नदी के विभिन्न घाटों पर विचरण के लिये मुक्त किया गया है। वर्तमान में लगभग 5 हजार से अधिक अण्डों से बच्चाें का निकलना शेष हैं।
दरअसल, इस वर्ष कछुआ संरक्षण को लेकर यह बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य में बीते तीन दशक से कछुओं की दो प्रजाति बाटागुर डोंगेका एवं बाटागुर कछुआ के संरक्षण का कार्य किया जा रहा है। चंबल नदी में रहवास कर रहे मादा कछुआ रेत में अण्डों का घोंसला बनाती हैं। कुछ जंगली जीव तथा नदी के जलीय जीव इन घोंसलों को क्षतिग्रस्त कर देते हैं। इस कारण अपेक्षित मात्रा में अण्डों से नवजात नहीं निकल पाते हैं। मादा कछुआ एक बार में 25 से 35 अण्डे देती है। इन अण्डों को सुरक्षित रखने के लिये बीते तीन दशक से चम्बल नदी के किनारे 4 अस्थाई हेचरी बरोली सबलगढ़ रेंज, बटेश्वरा देवरी रेंज, उसैदघाट तथा सांकरी-ज्ञानपुरा अम्बाह रेंज में बनाई गई हैं। इनमें 220 घोंसलाें में अण्डों काे संरक्षित किया गया।
इन अण्डों से बच्चे निकलने लगे हैं।
बटेश्वर देवरी में लाये गये 30 घोंसले से 584 नवजात निकले जिन्हें नदी में छोड़ दिया गया। इसी तरह अम्बाह रेंज के उसैदघाट के 49 घोंसलों से 350, सांकरी ज्ञानपुरा के 16 घोंसलों से 150 नवजात कछुओं को नदी में छाेड़ा गया है। उधर, सबलगढ़ रेंज के बरोली के 125 घोंसलों से नवजात निरंतर निकल रहे हैं।
मादा कछुआ नदी के तीर में रेत पर फरवरी-मार्च में अण्डे देती है, इन्हें मार्च अंत में तथा अप्रैल के प्रथम पखवाड़े में कृत्रिम हेचरी में आवश्यकतानुसार लाया जाता है। इन घोंसलों से मई के अंत व जून के प्रथम सप्ताह में नवजात निकलना आरंभ हो जाते हैं। इन सभी हेचरी की देखरेख वन विभाग के स्थाई व अस्थाई कर्मचारियों द्वारा निरंतर की जा रही है। जंगली जीव तथा जलीय जीवों से बचाने के लिये अण्डों के घोंसलों की रखवाली कटीली बागड़ तथा जाली लगाकर की जा रही है।
इस संबंध में उसैदघाट हेचरी के केयर टेकर रामनरेश का कहना है चम्बल नदी के किनारे उसैदघाट पर बनाये गये कृत्रिम हेचरी में 49 घोंसले रखे हुए हैं। इनमें से बच्चें निकल रहे हैं। इनमें से अधिकांश चम्बल नदी में छोड़े गये हैं। कुछ शावक देवरी घड़ियाल केन्द्र में भेजे गये हैं। घोंसलों में से नवजात रात के समय निकल आते हैं, इन्हें सुबह होते ही सुरक्षित स्थिति में नदी में छोड़ दिया जाता है।
वहीं, अम्बाह डिप्टी रेंजर राकेश कुमार गर्ग ने बताया कि हेचरी के अप एण्ड डाउन स्ट्रीम में 4-5 किलोमीटर तक फरवरी, मार्च के दौरान मादा कछुओं के पगमार्क देखकर घोंसला चिन्हित किया जाता है। मार्च अंत में इन घोंसलों को उसी स्थिति में लाकर हेचरी में उसी तापमान में रखा जाता है। इनकी लगातार निगरानी की जा रही है।
वहीं राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य के अधीक्षक, श्यामसिंह चौहान ने बताया कि विलुप्तप्राय कछुआ संरक्षण का कार्य कई वर्षों से किया जा रहा है। राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य में 4 स्थानों पर हेचरी बनाई गई है। जिनमें अण्डों से निकले नवजाताें को सुरक्षित कर नदी में छाेड़ दिया जाता है। सभी हेचरी पर कर्मचारी तैनात है, यह लगातार निगरानी कर रहे हैं।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / राजू विश्वकर्मा