संस्कृत हमारी प्राचीन ज्ञान परंपरा की आधारशिला – परमानंद शर्मा
संस्कृत हमारी प्राचीन ज्ञान परंपरा की आधारशिला – परमानंद शर्मा


उदयपुर, 11 जून (हि.स.)। संस्कृत भारती उदयपुर विभाग द्वारा आयोजित सप्त दिवसीय संस्कृत भाषा बोधन वर्ग का समापन समारोह बुधवार को सम्पन्न हुआ।

वर्ग संयोजक नरेंद्र शर्मा ने बताया कि समारोह में वक्ताओं ने संस्कृत को जीवन व्यवहार की भाषा बनाने का आह्वान करते हुए कहा कि यह मात्र एक प्राचीन भाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है।

समारोह के मुख्य अतिथि उदयपुर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक राजेश मीणा ने अपने उद्बोधन में संस्कृत भाषा के सामाजिक महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा में चिंतन, शांति और संतुलन की परंपरा है, जिसे आज पुनः जीवन में उतारने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा को देववाणी कहा गया है, जो हमारी सांस्कृतिक, धार्मिक और बौद्धिक परंपराओं की संवाहिका है। इसके संरक्षण और संवर्धन की जिम्मेदारी हम सभी की है। उन्होंने कहा कि यदि हम संस्कृत को पुनः जीवन्त और जनभाषा बनाना चाहते हैं तो इसके लिए प्रत्येक नागरिक को संकल्पित प्रयास करने होंगे। संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, अपितु हमारे समग्र ज्ञान-संपदा की कुंजी है, जिसे संरक्षित कर हम भावी पीढ़ियों को एक समृद्ध विरासत दे सकते हैं।

मुख्य वक्ता संस्कृत भारती चित्तौड़ प्रांत के प्रांत मंत्री परमानंद शर्मा ने कहा कि संस्कृत न केवल वेदों-शास्त्रों की भाषा है, बल्कि दैनिक व्यवहार में सरलता से अपनाई जा सकने वाली संवाद भाषा भी है। उन्होंने संस्कृत के अभ्यास को जीवन में नैतिकता और अनुशासन से जोड़कर प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि संस्कृत न केवल भारत की मूल भाषा है, बल्कि यह हमारी प्राचीन ज्ञान परंपरा की आधारशिला भी है। वेद, पुराण, उपनिषद, महाभारत जैसे ग्रंथों की रचना इसी भाषा में हुई है। यही कारण है कि संस्कृत के माध्यम से न केवल आध्यात्मिक, बल्कि वैज्ञानिक और दार्शनिक ज्ञान का भी विस्तार हुआ। उन्होंने कहा कि भारत सदियों से ज्ञान की पवित्र भूमि रहा है, जहां विश्व के विभिन्न कोनों से जिज्ञासु ज्ञानार्जन के लिए आया करते थे। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने ‘ज्ञान से पवित्र कुछ नहीं’ कहा है और यह विचार संस्कृत में ही सर्वाधिक प्रासंगिक प्रतीत होता है। परमानंद शर्मा ने कहा कि नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों ने विश्व में भारत की शिक्षा व्यवस्था को गौरवपूर्ण स्थान दिलाया था। आज पुनः विश्व भारत की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहा है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि पाइथागोरस जैसे सिद्धांत जिनकी चर्चा आधुनिक गणित में होती है, हमारे ऋषियों ने उनसे बहुत पहले ही दे दिए थे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्कृत भारती के महानगर अध्यक्ष संजय शांडिल्य ने की। उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षा की जड़ें संस्कृत में हैं और इसे प्रोत्साहन देना राष्ट्रीय पुनर्जागरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

समारोह की शुरुआत दीप प्रज्वलन व सरस्वती अर्चना से हुई। स्वस्तिवाचन वेद परग के विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत किया गया, वहीं शिविर शिक्षक श्रेयांश कंसारा द्वारा वर्ग गीत व ध्येय मंत्र का गायन किया गया।

विभाग संयोजक दुष्यंत नागदा ने सात दिवसीय वर्ग का वृत्त कथन प्रस्तुत किया। हर्षद द्विवेदी व प्रियंका ने अपने अनुभव साझा किए, जबकि जर्नेश और हार्दिक ने दुर्वाणी संस्कृत संभाषण अभ्यास का प्रदर्शन किया। सोनल भगिनी ने व्यक्तिगत गीत प्रस्तुत कर भावनात्मक वातावरण निर्मित किया।

धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रेनू पालीवाल (प्रांत विद्युत परिषद प्रमुख) द्वारा किया गया। कल्याण मंत्र का वाचन दिव्यांशी भगिनी ने किया।

इस अवसर पर संस्कृत पुस्तकालय एवं प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसमें दैनिक जीवन में संस्कृत के उपयोग व आचरण संबंधी साहित्य को दर्शाया गया।

कार्यक्रम का संचालन पूर्णतः संस्कृत में वर्ग संयोजक नरेंद्र शर्मा द्वारा किया गया। कार्यक्रम में डॉ. यज्ञ आमेटा, मानाराम चौधरी, मुकेश कुमावत, चैनशंकर दशोरा, मंगल कुमार जैन, कुलदीप जोशी, विकास डांगी, मेहरान, जय, सोनल, नीलू डांगी सहित अनेक स्वयंसेवकों का सक्रिय योगदान रहा।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुनीता