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जम्मू, 11 जून (हि.स.)। जम्मू-कश्मीर में उर्दू कोई आमजन की भाषा नहीं है इसकी जबरन अनिवार्यता को समाप्त करने के साथ सरकारी विभागों विशेष तौर पर पुलिस व राजस्व विभागों के कामकाज व लेखन में उर्दू भाषा के एकल वर्चस्व पर अंकुश लगाने तथा सरकारी नौकरियों के लिए इसकी अनिवार्यता पर रोक के कड़े निर्देश किए जाएं यह कहना है शिवसेना यूबीटी जम्मू-कश्मीर ईकाई प्रमुख मनीश साहनी का ।
पार्टी प्रदेश मध्यवर्ती कार्यालय में पार्टी प्रदेश प्रमुख मनीश साहनी ने कहा कि उर्दू जम्मू-कश्मीर की पांच आधिकारिक भाषाओं में से एक है यह किसी भी महत्वपूर्ण समूह की मातृभाषा नहीं है। पिछले कुछ सालों व केन्द्र शासित प्रदेश बनने के बाद तो उर्दू लिखने-पढ़ने वालों के आंकड़े में भारी गिरावट आई है। इसके बावजूद सरकारी विभागों विशेष तौर पर राजस्व व पुलिस विभाग में दस्तावेजों और कार्रवाई में उर्दू भाषा के एकल उपयोग का सिलसिला बदस्तूर जारी हैं।
जिससे आमजन को इसके अंग्रेजी व हिन्दी में अनुवाद के लिए दर-दर भटकने को मजबूर होना पड़ता है। वहीं अधिकांश विभागों के उच्चाधिकारियों को भी सरकारी रिकार्ड के अनुवाद के लिए उर्दू जाननें वाले कर्मचारियों का सहारा लेना पड़ रहा है।
साहनी ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को एक लिखित ज्ञापन के माध्यम से सरकारी कामकाज में उर्दू के एकल वर्चस्व को समाप्त करने तथा हालही में राजस्व विभाग में नायब तहसीलदार के पदों की भर्ती प्रक्रिया समेत भविष्य में भी सरकारी नौकरियों में उर्दू भाषा के ज्ञान को अनिवार्य होने की औपचारिकता पर रोक लगाने की मांग की है।
हालही में जेकेएसएसबी ने राजस्व विभाग में नायब तहसीलदार के 75 पदों की भर्ती का विज्ञापन जारी किया है जिसमें उर्दू भाषा का व्यावहारिक ज्ञान होना अनिवार्य है। इसकी जांच के लिए परीक्षा होगी। उन्हें उर्दू पढ़ना और लिखना आना चाहिए।
हिन्दुस्थान समाचार / रमेश गुप्ता