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बलरामपुर, 11 जून (हि.स.)। जिले के सनावल कामेश्वर नगर ग्राम में स्थित पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर एक बहुत गहरी गुफा स्थित है। जिसे लोग साधू मीना गुफा के नाम से जानते हैं। यह गुफा बहुत रहस्यमयी मानी जाती है। इसका इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। पहले आसपास के लोग यदाकदा ही इस गुफा को देखने आया करते थे किंतु अब यह सिलसिला भी खत्म सा हो गया है। इस गुफा के बारे में शायद ही प्रमाणिकता के साथ कोई बात कर सके। गुफा जितनी रहस्यमयी है उतनी ही विशेषताएं अपने आप में समेटे हुए है। यदि प्रशासन इस पर जरा भी ध्यान दे तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि इसे पर्यटन स्थल के रूप में तब्दील होने में जरा भी देर लगेगी। अभी तो यहां तक जाने के लिए कोई मार्ग तो क्या स्थाई पगदण्डी भी नहीं है। जो वहां जाते भी है वे अपनी जान जोखिम में डालकर पत्थरों, झाड़ियों के सहारे यहां तक पहुंच पाते है। आज तक यह कोई नहीं जान सका कि इस गहरी गुफा के अन्दर सतह पर क्या हैं। हां कभी कुछ लोगों ने इसके अन्दर बाँस जोड़कर इसकी थाह लेने की कोशिश की और बताया कि, इसकी गहराई लगभग सौ फीट हो सकती है।
किवदंती यह हैं कि पहले, यहां गुफा में एक साधु रहकर तपस्या किया करते थे। दिन में वे गुफा के बाहर आकर एक वृक्ष की छाया में अपनी धुनि रमाते थे और रात गुफा के अन्दर विश्राम के लिए चले जाते थे। स्थानीय लोगों कि माने तो 1983-84 के किसी महीने में अच्छी खासी ऊंचाई और डील-डौल, काया वाले एक साधु का यहां अनायास आगममन हुआ। उन्होंने इसी गुफा में अपना डेरा डाला, धूनी रमाई और बैठ गए। खबर लगते ही यहां लोगों की भीड़ उमड़ने लगी। यहां ढोलक मजीरा के साथ भजन-कीर्तन की आवाजें दूर-दूर तक गूंजने लगी। यह सिलसिला दिन रात चलने लगी। इसके बाद अचानक साधू के चले जाने के बाद सब थम गया।
स्थानीय निवासी सुरेश कुशवाहा की माने तो, जब साधु गुफा में निवासरत थे तो उन्होंने लोगों को कहा था कि, गुफा में एक विशाल अजगर का वास है और बजरंग बली भी यहां आते हैं। फिलहाल यहां तक जाने के लिए रामानुजगंज से 45 किलोमीटर पश्चिम सनावल से इस पहाड़ तक पहुंचकर 200 फीट की ऊंचाई चढ़नी पड़ती है।
साधु मीना गुफा एक शुष्क गुफा ही नहीं बल्कि यह मौसम का मिजाज भी बताने का काम करता है। सूरज पण्डो (45 वर्षीय) बताते है कि, बरसात के दिनों में जब पूरा पहाड़ हरा भरा हो जाता है और पहाड़ के एक भी पत्थर नजर नहीं आते हैं ऐसे में इस गुफा से सफेद धुआं निकलने लगता है और लोग कहने लगते हैं कि बारिश तेज होगी। यह गैस का गुब्बार आसपास के गांवों से भी देखा जा सकता है। धुआं कैसे और क्यों निकलता है, इसकी जानकारी किसी को नहीं हो पाई है। बरसात के मौसम में यहां तक पहुंच पाना नामुमकिन होता है क्योंकि तब चट्टानों पर फिसलन बढ़ जाती है, ऐसे में यदि छोटी सी भी चुक हुई तो फिर प्राणों की रक्षा असंभव ही है। यह अलग बात है कि बरसात की हरियाली देख कर मवेशी बकरी आदि पहाड़ पर काफी ऊंचाई तक चरने के लिए चढ़ जाते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / विष्णु पांडेय