हादसे से सबक लेकर बदलेगा लोकल ट्रेनों का डिज़ाइन, यात्रियों की सुरक्षा होगी पहले से बेहतर
महिला ट्रेनें


कोलकाता, 11 जून (हि. स.)। मेट्रो की तरह ही अब लोकल ट्रेनें भी स्टेशन पर रुकने के बाद स्वचालित रूप से अपने दरवाज़े खोलेंगी और यात्रियों के चढ़ने-उतरने के बाद दरवाज़े खुद-ब-खुद बंद हो जाएंगे। यात्रियों की भीड़ के दबाव में चलती ट्रेन से गिरकर होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए भारतीय रेलवे बोर्ड ने नई डिज़ाइन वाली लोकल ट्रेनों को चलाने का निर्णय लिया है।

यह फैसला ऐसे समय में आया है जब सोमवार को मुम्बई के उपनगरीय इलाके में भारी भीड़ के कारण चलती ट्रेन से गिरकर चार यात्रियों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। इस दुर्घटना के केवल 24 घंटे के भीतर रेलवे अधिकारियों ने यात्री सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में तेज़ी से कदम उठाए हैं।

पूर्व रेलवे के एक अधिकारी ने बताया कि रेलवे के रोलिंग स्टॉक विभाग के अधिकारियों ने जानकारी दी है कि नई डिज़ाइन की गई नॉन-एसी लोकल ट्रेनें नवंबर तक तैयार हो जाएंगी और जनवरी 2026 से इन ट्रेनों में यात्रियों की आवाजाही शुरू हो जाएगी। प्रारंभिक चरण में यह ट्रेनें मुम्बई के उपनगरीय इलाकों में चलाई जाएंगी, लेकिन बाद में देश के अन्य उन क्षेत्रों में भी इन्हें लागू करने की योजना है जहां लोकल ट्रेनों में अत्यधिक भीड़ होती है।

नई डिज़ाइन वाली इन लोकल ट्रेनों में स्वचालित स्लाइडिंग दरवाज़े होंगे। आमतौर पर लोकल ट्रेनों में दरवाज़े खुले रहते हैं जिससे हवा का प्रवाह बना रहता है, लेकिन दरवाज़े बंद होने की स्थिति में डिब्बों में दमघोंटू माहौल बन सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए प्रत्येक कोच की छत पर एक वेंटिलेशन यूनिट लगाई जाएगी जो ताज़ा हवा को अंदर पंप करेगी। इसके अलावा एक कोच से दूसरे कोच में जाने के लिए वेस्टिब्यूल भी खुले रहेंगे।

रेलवे अधिकारियों के अनुसार यह तकनीकी बदलाव दीर्घकालिक नहीं हैं क्योंकि पहले से ही लोकल ट्रेनों में स्लाइडिंग दरवाज़े लगे होते हैं जिन्हें अब स्वचालित किया जाएगा।

पूर्व रेलवे के वाणिज्यिक विभाग के अनुसार, सियालदह स्टेशन से प्रतिदिन लगभग 14 से 15 लाख यात्री यात्रा करते हैं। सियालदह-नैहाटी, सियालदह-बनगांव, सियालदह-डायमंड हार्बर, सोनारपुर-कैनिंग और बारुईपुर-नामखाना जैसे मार्गों पर लोकल ट्रेनों में भारी भीड़ आम बात है।

भारतीय रेलवे के इंजीनियरों का कहना है कि लोकल ट्रेनों में मेट्रो जैसी स्वचालित दरवाज़े की व्यवस्था लागू करना आसान नहीं होगा। मेट्रो में ज़रा सी बाधा आने पर दरवाज़े बंद नहीं होते और यदि ऐसा ही सिस्टम लोकल में लागू हुआ तो ट्रेनें सुचारु रूप से नहीं चल पाएंगी। इसलिए डिज़ाइन तैयार करते समय सभी संभावित समस्याओं को ध्यान में रखकर ही काम किया जाएगा।

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर