छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची चोटी गौरलाटा से दिखता है प्रकृति का अद्भुत नजारा
गौरलाटा


रास्ते में बहती है छोटी छोटी कई झरने।


गौरलाटा।


-आठ से दस किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई, घने जंगल, छोटे-छोटे झरने और पथरीली पगडंडियों से होकर गुजरता है रास्ता

बलरामपुर, 11 जून (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के कुसमी विकासखंड में स्थित गौरलाटा प्रदेश की सबसे ऊंची चोटी है। जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई 4 हजार फिट से भी ज्यादा है। यहां प्रकृति प्रेमी शांत वातावरण और ट्रैकिंग के लिए दूर-दूर से आते हैं। गौरलाटा अपनी ऊंचाई, जैव विविधता और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। यह प्रर्यटन स्थल के लिए तेजी से उभर रहा है। यहां पर एडवेंचर टीमों के द्वारा समय-समय पर एडवेंचर गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।

गौरलाटा चोटी की ट्रैकिंग के लिए सुबह का समय सही है। इन दिनों गर्मी के मौसम में सुबह-सुबह करीब दो से ढाई घंटे की ट्रैकिंग और करीब आठ से दस किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई कर इसकी चोटी तक पहुंचा जा सकता है। चोटी पर चढ़ाई करते समय जंगल, पहाड़ और पथरीली पगडंडियों से होकर रास्ता गुजरता है। यहां पहाड़ों के बीच छोटे-छोटे झरने बहने की आवाज सुनाई देती है।

स्थानीय निवासी दिनेश कोरवा (42) बताते हैं कि फरवरी महीने में यहां ट्रैकिंग के लिए लोग दूर-दूर से आते है। ठंडी हवा और स्वच्छ वातावरण के बीच ट्रैकिंग करने में और भी आनंददायक होता है।

गौरलाटा की चोटी से पूरे क्षेत्र का मनमोहक दृश्य देखने को मिलता है। इसके हर ओर घने जंगल, कल कल बहती नदियां और दूर-दूर तक फैली हुई पहाड़ियों की सुंदरता देखते बनती है। फोटोग्राफी के शौकीन लोग यहां आते रहते हैं। सनसेट का दृश्य, रंगों की खूबसूरती आकाश को और सजाती है। चोटी पर ताजी हवा और शांति का एहसाह कराती है। जिससे मन शांत हो शरीर रिलेक्स हो जाता है। घंटों की चढ़ाई के बाद ऊपर से ये दृश्य दिल को सुकून देता है। प्रयटन प्रेमियों के लिए गौरलाटा की चोटी से यह दृश्य अविस्मरणीय अनुभव बन जाता है।

आदिवासी संस्कृति की मिलती है झलक

गौरलाटा क्षेत्र न केवल प्राकृतिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय आदिवासी समुदाय अपनी परंपराओं और अनूठी जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं। आदिवासी त्यौहार और लोकगीत इस स्थान की सांस्कृतिक समृद्धि को और बढ़ाते हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि वे पर्यटकों का दिल खोलकर स्वागत करते हैं, जिससे यह स्थान पर्यटकों के लिए और भी यादगार बन जाता है। इसके अलावा स्थानीय आदिवासी संस्कृति और पारंपरिक व्यंजन भी पर्यटकों के लिए बड़े आकर्षण का केंद्र हैं। यहां आने वाले लोग न केवल प्रकृति का आनंद लेते हैं, बल्कि जिले की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी नजदीक से समझ पाते हैं। गौरलाटा पहुंचने के लिए बलरामपुर जिला मुख्यालय से 60-65 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / विष्णु पांडेय