माइक्रोग्रीन्स की खेती: कम जगह में पोषण और रोजगार का नया विकल्प
माइक्रोग्रीन्स की खेती: कम जगह में पोषण और रोजगार का नया विकल्प


- वर्षिणी की पहल से युवाओं को मिल रहा प्रेरणा स्रोत।

अयोध्या, 11 जून (हि.स.)। आधुनिक जीवनशैली और बढ़ती स्वास्थ्य सजगता के बीच माइक्रोग्रीन्स की खेती एक सुलभ, लाभकारी और पर्यावरण-संवेदनशील विकल्प के रूप में उभर रही है। यह तकनीक न केवल कम स्थान में पौष्टिक आहार उत्पादन का माध्यम है, बल्कि स्वरोजगार के नए द्वार भी खोल रही है। कृषि विश्वविद्यालय, कुमारगंज की पीएचडी तृतीय वर्ष की छात्रा अमृत वर्षिणी के अनुसार, माइक्रोग्रीन्स पौधों की वह प्रारंभिक अवस्था होती है जब उनमें दो बीजपत्तियाँ और एक सच्ची पत्ती निकलती है। इस अवस्था में ये पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं और इन्हें सिर्फ 7 से 10 दिनों में काटा जा सकता है।

वर्षिणी बताती हैं कि सरसों, मूली, पालक, धनिया, मेथी, ब्रोकोली, तुलसी, चुकंदर, अमरंथ, मटर और सूरजमुखी जैसे बीजों से माइक्रोग्रीन्स आसानी से उगाए जा सकते हैं। मिट्टी, कोकोपीट या ट्रे में हल्का पानी देकर इन्हें घर की छत, बालकनी या खिड़की में भी उगाया जा सकता है। खास बात यह है कि इनकी खेती के लिए रासायनिक खाद या कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं होती, जिससे यह पूरी तरह प्राकृतिक और सुरक्षित होती है।

स्वास्थ्यवर्धक और लाभकारी व्यवसाय की ओर युवाओं का रुझान

माइक्रोग्रीन्स का सबसे बड़ा आकर्षण उनका पोषण मूल्य है। शोध बताते हैं कि इनमें परिपक्व पौधों की तुलना में 4 से 40 गुना तक अधिक पोषक तत्व होते हैं, जिनमें विटामिन सी, ई, के, बीटा-कैरोटीन, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम और एंटीऑक्सीडेंट्स शामिल हैं। ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और मधुमेह, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों में भी लाभकारी सिद्ध होते हैं। स्वाद में ये कभी तीखे, कभी हल्के कड़वे या मीठे होते हैं, जिनका उपयोग सलाद, सूप, सैंडविच और हेल्दी स्नैक्स में बढ़ता जा रहा है।

माइक्रोग्रीन्स की खेती में कम लागत और अधिक मुनाफा होने के कारण यह स्वरोजगार का एक सशक्त माध्यम बनती जा रही है। महिलाएं, छात्र, गृहिणियाँ और बेरोजगार युवा इसे छोटे स्तर पर शुरू कर आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। इसके लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती – केवल थोड़ी जानकारी और नियमित देखभाल ही पर्याप्त है। होटल, रेस्तरां, हेल्थ फूड स्टोर्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर इनकी मांग तेजी से बढ़ रही है। एक ट्रे में उगाई गई फसल को स्थानीय बाजार में आसानी से बेचा जा सकता है।

माइक्रोग्रीन्स की खेती न केवल पोषण सुरक्षा प्रदान करती है, बल्कि यह पर्यावरणीय संरक्षण की दिशा में भी एक प्रभावी पहल है। कम पानी की खपत, रासायनिक उर्वरकों से मुक्ति और स्थानीय उत्पादन इसे हरित भविष्य की ओर एक कदम बनाते हैं। अमृत वर्षिणी जैसी युवाओं की पहल से यह उम्मीद बन रही है कि आने वाले समय में माइक्रोग्रीन्स की खेती ग्रामीण और शहरी युवाओं के लिए एक नया आजीविका का आधार बनेगी।

हिन्दुस्थान समाचार / पवन पाण्डेय