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सरायकेला, 11 जून (हि.स.)। जिले के आदित्यपुर स्थित दिंदली बस्ती में 200 वर्षों से चली आ रही चड़क पूजा महोत्सव का आयोजन पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ किया गया। पूजा के दौरान रात को छऊ नृत्य का आयोजन हुआ, जिसमें ग्रामीणों ने भाग लेकर पर्व को और भी भव्य बना दिया। दिंदली बस्ती की यह चड़क पूजा न सिर्फ एक धार्मिक आस्था है, बल्कि गांव की संस्कृति और एकजुटता की मिसाल भी है।
अनुष्ठान के दौरान भक्तों ने भगवान भोलेनाथ की आराधना करते हुए अपने शरीर को छेदकर अनूठी आस्था का प्रदर्शन किया। इस दौरान लालटू महतो ने कहा कि यह पूजा गांव में सुख-शांति और बारिश के लिए होती है और इसमें दर्द तक महसूस नहीं होता।
चड़क पूजा महोत्सव के दौरान भक्तों ने नदी से जल भरकर भगवान शिव के मंदिर में जाकर विधिवत पूजा अर्चना की और भोलेनाथ की आराधना में लीन हो गए।
इसके बाद चड़क पूजा के पारंपरिक अनुष्ठान में दर्जनों भोक्ताओं ने अपनी जीभ और बांह में सुई डालकर या लोहे की छड़ें छेदकर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए अनूठा भक्ति का प्रदर्शन किया। इस अद्भुत पूजा परंपरा का निर्वहन गांव में वर्ष 1818 से किया जा रहा है और इस साल इसके 200 वर्ष पूरे हो गए।
पूजा कमेटी के अध्यक्ष लालटू महतो ने बताया कि करीब एक दर्जन लोग अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों में छेद करवाते हैं और रजनी फोड़ा की रस्म पूरी करते हैं। इस दौरान उन्हें तनिक भी दर्द महसूस नहीं होता। उन्होंने आगे कहा कि यह पूजा इसलिए होती है ताकि गांव में सुख-शांति बनी रहे और बारिश हो। हमारे पूर्वज इस परंपरा को बड़े श्रद्धा और उल्लास के साथ निभाते आ रहे हैं।
लालटू महतो ने यह भी बताया कि इस पूजा का इतिहास गांव में महामारी के प्रकोप से जुड़ा हुआ है, जब भीषण गर्मी के दौरान बीमारी फैल गई थी। कई लोगों की अकाल मृत्यु हो गई थी। तभी से इस परंपरा की शुरुआत हुई थी, ताकि भोलेनाथ की कृपा से गांव को महामारी से मुक्ति मिले और सुख-शांति बनी रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / Manoj Kumar