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बलरामपुर, 10 जून (हि.स.)। यह भारत भूमि है। यहां के लोगों की संस्कार पूरी दुनिया से अलग है। इसी भारत की धरती पर सतयुग में श्रवण कुमार भी हुए थे, जिन्होने कांवर पर अपने माता पिता को बैठा कर तीर्थाथन कराया और अमर हुए। आज भी वे किवंदती बने हुए है। ऐसा ही एक 38 वर्षीय नारायण राव आंध्र प्रदेश के नगर मालव ग्राम के हैं जो अपने 95 वर्षीय लकवाग्रस्त राम नायडू पिल्ले पिता को हाथ ठेला पर बिठाकर 4 मई से अयोध्या रामलला के दर्शन के लिए निकल पड़े हैं। बलरामपुर जिले के वाड्रफनगर में बीते शाम उनसे हिन्दुस्थान समाचार के संवाददाता से मुलाकात हुई।
आज का युग वहां तक आ पहुंचा है जहां बेटा अपने मां-बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं ऐसे में नागर मालव आंध्रा के यह सज्जन दुनियां के लिए किसी श्रवण कुमार से कम नहीं, जो अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए हाथ ठेला गाड़ी बनाकर सोलह सौ किलोमीटर की पैदल यात्रा पर निकल पड़े हैं। अभी तक 36 दिनों की यात्रा पूरी कर चुके हैं। वाड्रफनगर से अयोध्या की दूरी 450 किलोमीटर हैं।
पिता को लेकर यात्रा पर निकले पुत्र ने कहा कि, उनके पिता की उम्र बहुत हो चुकी है और उनका स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा नहीं रहता है। मुझे तो लगता है कि उनकी आँखें बस भगवान राम के दर्शन के लिए ही खुली हुई है। आते-जाते हुए रास्ते में यदि कुछ अनहोनी हो जाती है तो पिता की अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनका अंतिम संस्कार वे वाराणसी में ही करेंगे।
उन्होंने बताया कि इस यात्रा के लिए उन्हे 33 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा। इससे पूर्व उनके पिता जो अब वृद्ध हो चुके हैं, उन्हे लेकर 1993 में पैदल लेकर अयोध्या गए थे किन्तु तब वहां चल रहे विवाद के कारण पुलिस ने वहां जाने से मना कर दिया था। उनके पिता तब अपने पुत्र से यह कहते हुए वापस लौट आए कि जब मंदिर बन जाए तब तुम मुझे पैदल ही लेकर अयोध्या ले जाना। पुत्र समय का इंतजार करता रहा और अब जब अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया तो अपने हाथों बनाए हुए हाथगाड़ी पर 95 वर्षीय पिता को आराम से लेकर राम दर्शन को निकल पड़ा हैं। उसके माथे पर न तो थकान के कोई चिन्ह हैं न ही चिंता की कोई लकीरें। यह कलयुग का श्रवण कुमार है, किन्तु सतयुग के श्रवण कुमार से कम नहीं।
कलयुगी श्रवण कुमार ने जो हाथ गाड़ी बनाई है और जिसे धक्का देते हुए चल रहे हैं उसमें ही खाने, रहने सोने की पूरी व्यवस्था है। बातचीत में कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के लोग बहुत अच्छे हैं हमारे आंध्रा वाले जैसे। छत्तीसगढ़ में इतने दिनो तक यात्रा करते हुए कभी कहीं कोई तकलीफ नहीं हुई। हर जगह लोगों ने उन्हें बहुत सम्मान दिया। वे प्रतिदिन लगभग 25 से तीस किलोमीटर की यात्रा करते हैं ताकि पिता को ज्यादा थकान न हो जाए। अभी तक लगभग 11 सौ किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / विष्णु पांडेय