भूमि कानून सुधारों के सवाल पर एजेपी ने सरकार की मंशा पर उठाए सवाल
भूमि कानून सुधारों के सवाल पर एजेपी ने सरकार की मंशा पर उठाए सवाल


गुवाहाटी, 10 जून (हि.स.)। असम जातीय परिषद (एजेपी) ने असम भूमि प्रशासन आयोग के गठन और उद्देश्यों के बारे में हाल ही में सरकार द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण पर मंगलवार काे कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे भ्रामक और टालमटोल वाला बताया है। जारी बयान में, एजेपी के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई, महासचिव जगदीश भुइयां और उपाध्यक्ष सीके दास ने संयुक्त रूप से मुद्दों को संबोधित करते हुए भूमि कानून सुधारों के पीछे सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल उठाए।

4 जून को एजेपी ने नवगठित असम भूमि प्रशासन आयोग के गठन और दायरे पर सवाल उठाते हुए एक संवाददाता सम्मेलन आयोजित की और मांग की कि जनता की राय प्रस्तुत करने की समय सीमा 30 सितंबर, 2025 तक बढ़ाई जाए। हालांकि, राज्य सरकार ने केवल 30 जून तक बढ़ाकर जवाब दिया और राजस्व और भूमि विभाग के सचिव द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रेस वक्तव्य जारी किया, जिसमें पार्टी के आरोपों का खंडन किया गया।

एजेपी नेताओं ने कहा, भूमि कानूनों में कोई भी बड़ा बदलाव करने से पहले लोगों को विश्वास में लिया जाना चाहिए। हम सरकार से भूमि से जुड़ी सभी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने का आग्रह करते हैं। सरकार के दावों का बिंदुवार खंडन करते हुए आरोप लगाया है कि सरकार असम भूमि एवं राजस्व विनियमन, 1886 को वापस लेने या कमजोर करने के लिए तथ्यों को गलत तरीके से पेश कर रही है।

एजेपी के अनुसार, सरकार का यह दावा कि यह कदम न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बिप्लब कुमार शर्मा समिति की सिफारिशों पर आधारित है, निराधार है। वास्तव में, समिति ने अपनी रिपोर्ट के खंड 7.6.4 में विशेष रूप से कहा है कि 1886 अधिनियम के प्रावधानों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए, और कहीं भी इसे निरस्त करने की सिफारिश नहीं की। इसके अलावा, समिति ने स्पष्ट रूप से इस बात पर प्रकाश डाला कि सरकार द्वारा अधिनियम का बार-बार उल्लंघन किया गया है।

एजेपी ने शर्मा समिति की रिपोर्ट की स्थिति के बारे में भी संदेह जताया है। सवाल किया कि क्या इसे केंद्र सरकार ने स्वीकार किया है, और क्या केंद्रीय गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव, जिन्होंने सदस्य सचिव के रूप में कार्य किया है और रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किए हैं। इन बिंदुओं पर स्पष्टता के बिना, एजेपी का तर्क है कि समिति की सिफारिशों का हवाला देना आधारहीन है।

आदिवासी और आरक्षित समुदायों के भूमि अधिकारों को कम करने के किसी भी कदम से सरकार के इनकार पर, एजेपी ने पलाशबाड़ी में बोरदुवार चाय बागान के पास आदिवासी बेल्ट की 1600 एकड़ से अधिक भूमि को सैटेलाइट टाउनशिप के निर्माण के लिए आवंटित करने के कथित कदम पर सवाल उठाया। पार्टी ने दावा किया कि यह सीधे तौर पर सरकार के दावे का खंडन करता है और आदिवासी भूमि को हड़पने का एक पिछले दरवाजे से किया गया प्रयास दर्शाता है।

असम भूमि और राजस्व विनियमन, 1886 को “औपनिवेशिक” और निरस्त करने की आवश्यकता के रूप में सरकार द्वारा लेबल किए जाने की आलोचना करते हुए, एजेपी ने याद दिलाया कि इस अधिनियम ने 1927 से गैर-कृषकों को कृषि भूमि के हस्तांतरण पर प्रतिबंध सहित महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय प्रदान किए हैं। पार्टी ने आरोप लगाया कि इस प्रतिबंध को हटाने के लिए एक दशक पहले राज्य सरकार द्वारा किए गए बदलावों ने बाहरी लोगों और कॉर्पोरेट हितों द्वारा भूमि हड़पने में तेजी ला दी है।

एजेपी ने शर्मा समिति की रिपोर्ट के पृष्ठ 57 और 58 का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि भूमि वर्गीकरण में बदलाव और कृषि भूमि को गैर-कृषकों को हस्तांतरित करने की अनुमति देने वाले कानूनी संशोधन 1886 के अधिनियम का स्पष्ट उल्लंघन है।

पार्टी ने हस्तलिखित भूमि अभिलेखों और जमाबंदी दस्तावेजों के भाग्य पर भी चिंता व्यक्त की, सरकार से आश्वासन मांगा कि क्या इन्हें संरक्षित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि ऐसे दस्तावेज लंबे समय से चले आ रहे भूमि विवादों को सुलझाने और नए विवादों को रोकने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर, एजेपी ने बताया कि यह केंद्रीय कानून के दायरे में आता है, और सवाल किया कि क्या राज्य सरकार भूमि प्रशासन आयोग के माध्यम से केंद्रीय कानून को दरकिनार करने का इरादा रखती है।

अपनी मांग को दोहराते हुए, एजेपी ने एक बार फिर सार्वजनिक प्रस्तुतियों की समय सीमा 30 सितंबर, 2025 तक बढ़ाने और असम भूमि प्रशासन आयोग की मसौदा रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की है।

पार्टी ने इस बात पर जोर दिया कि असम के लोगों के लिए भूमि एक बेहद संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दा है और सरकार को जल्दबाजी में या अस्पष्ट निर्णय लेने के खिलाफ चेतावनी दी, जिससे स्वदेशी समुदायों के अधिकारों और सुरक्षा पर असर पड़ सकता है।------------------------

हिन्दुस्थान समाचार / अरविन्द राय