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प्रयागराज, 03 दिसम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश विद्युत निगम के सहपुरी गोदाम, वाराणसी में करोड़ों रुपये के सामान के गबन के आरोप में बर्खास्त किए गए पूर्व स्टोर कीपर रमेश चंद्र मालवीय की विशेष अपील खारिज कर दिया है।
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा जांच रिपोर्ट न दिए जाने के आधार पर दोष सिद्धि के निष्कर्ष पर पुनर्विचार का कोई आधार नहीं है, क्योंकि मामला सबूत युक्त बड़े गबन का है।
वर्ष 1997 में एक जांच में लगभग 64 मीट्रिक टन, मूल्य 19.50 लाख रुपये के टावर पार्ट्स और अन्य सामान, कुल मिलाकर लगभग 1.86 करोड़ रुपये का सामान गोदाम से गायब पाया गया। इस पर एफआईआर दर्ज हुई और फिर अनुशासनिक कार्रवाई शुरू की गई। जांच अधिकारी ने आरोपित को दोषी पाया और अधीक्षण अभियंता ने 23 मार्च, 2000 को उन्हें बर्खास्त करने और गबन के राशि की वसूली का आदेश दिया।
तर्क था कि उन्हें जांच अधिकारी के रिपोर्ट की प्रति नहीं दी गई, जिससे सफाई देने का उचित अवसर नहीं मिला और यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। कहा कि रिपोर्ट न देना अपने आप में पक्षपात है, अतिरिक्त पक्षपात साबित करना जरूरी नहीं है।
न्यायालय ने कहा कि हालांकि जांच रिपोर्ट देना आवश्यक है, लेकिन अगर न्यायालय इस नतीजे पर पहुंचे कि रिपोर्ट न मिलने से दोष सिद्धि या सज़ा पर कोई फर्क नहीं पड़ता, तो सज़ा के आदेश में दखल नही दिया जा सकता।
न्यायालय ने पाया कि मामले में सबूत स्पष्ट हैं। गोदाम में सामान की कमी का रिकॉर्ड पर प्रमाण है और अपीलकर्ता ने स्वयं उस सामान की रसीद पर हस्ताक्षर किए थे। उनका यह कहना कि तत्कालीन कार्यकारी अभियंता के दबाव में उन्होंने रसीद पर हस्ताक्षर किए, विश्वसनीय नहीं है।
खंडपीठ ने कहा, “यह मामला उच्च स्तरीय गबन का है, जहां करोड़ों रुपये के सामान का दुरुपयोग हुआ है। ऐसे तथ्यों और परिस्थितियों में, यदि जांच रिपोर्ट अपीलकर्ता को दी भी जाती, तो भी दोष सिद्धि के निष्कर्ष पर कोई मूलभूत प्रभाव नहीं पड़ता।“ उच्च न्यायालय ने कहा कि एकल पीठ द्वारा पारित आदेश तर्कसंगत और उचित कारणों पर आधारित है। इसमें हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं दिखता। इस प्रकार विशेष अपील खारिज कर दी गई और बर्खास्तगी का आदेश बरकरार रखा।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे