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जयपुर, 3 दिसंबर (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए पदमेश मिश्रा को अतिरिक्त महाधिवक्ता के तौर पर नियुक्त करने को कानूनी तौर पर वैध माना है। अदालत ने कहा कि लॉ ऑफिसर की नियुक्ति करना राज्य सरकार का प्रशासनिक व वैधानिक अधिकार है। अदालत ने कहा कि यह कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है कि वह इस बात की जांच करें कि राज्य सरकार अपनी पैरवी के लिए किसे नियुक्त करती है। अदालत ने कहा कि जिस तरह कानून के प्रोफेसर जैसे व्यापक ज्ञान वाले व्यक्ति भी कोर्ट में बहस के लिए उपयुक्त नहीं हो सकते, वैसे ही किसी व्यक्ति के ज्ञान का आकलन करने के लिए अनुभव का अपना महत्व हो सकता है, लेकिन वकालत की कला वर्षो के अनुभव से बंधी नहीं है। ऐसे में वाद नीति के नियमों से हटकर एएजी पद पर की गई नियुक्ति को अनुचित नहीं माना जा सकता। इसके साथ ही अदालत ने इस संबंध में दायर अपील को खारिज कर दिया है। एक्टिंग सीजे एसपी शर्मा और जस्टिस बीएस संधू की खंडपीठ ने यह आदेश सुनील समदडिया की अपील पर सुनवाई करते हुए दिए।
याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार की वाद नीति, 2018 के अनुसार, 10 साल का वकालत अनुभव रखने वाले अधिवक्ता को ही एएजी नियुक्त कर सकते हैं। वहीं राज्य सरकार ने इसमें संशोधन कर विशेषज्ञता के आधार पर किसी भी अधिवक्ता को एएजी बनाने का प्रावधान किया है। इसके तहत ही राज्य सरकार ने वकील के तौर पर 2019 मेें पंजीकृत पदमेश मिश्रा को 23 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पैनल एडवोकेट नियुक्त किया और इसके तीन दिन बाद ही उसे सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार का एएजी बना दिया दिया। इसलिए मिश्रा को एएजी के तौर पर कार्य करने से रोका जाए। इसके जवाब में राज्य के एएजी विज्ञान शाह ने कहा कि वाद नीति बाध्यकारी नहीं है और सरकार को उसमें संशोधन करने का अधिकार है। वहीं पदमेश मिश्रा की नियुक्ति वाद नीति में संशोधन करने के बाद ही की गई है। एकलपीठ ने भी इसी आधार पर याचिका को खारिज किया था। जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने भी अपील को खारिज कर दिया है।
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हिन्दुस्थान समाचार / पारीक