- हृदयनारायण दीक्षित
सीमा लघुता है और असीम विराट। हमारा होना एक सीमा में है लेकिन विराट हो जाने की संभावनाएं खुली हुई हैं। शरीर हमारी पहली सीमा है, इसके बाद परिवार दूसरी सीमा। इसका आनंद निजी सीमा के अतिक्रमण में है। इसके बाद स
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