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कोलकाता, 18 दिसंबर (हि. स.)। पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में तृणमूल कांग्रेस से निष्कासित विधायक हुमायूं कबीर द्वारा बाबरी मस्जिद बनाने के फैसले को चुनौती देते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया गया है। गुरुवार को उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुजॉय पाल और न्यायमूर्ति पार्थसारथी सेन की खंडपीठ ने यह मामला खारिज कर दिया। दोनों न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि इस मामले की कोई स्वीकार्यता नहीं है।
तृणमूल कांग्रेस से निलंबित और भरतपुर के विधायक हुमायूं कबीर ने जिला प्रशासन की अनुमति के बिना बेलडांगा में बाबरी मस्जिद का काम शुरू कर दिया था। इसी आरोप के साथ हाल ही में उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई थी। गुरुवार को उच्च न्यायालय ने उस मामले को खारिज कर दिया।
दोनों न्यायाधीशों की पीठ का तर्क था कि किसी व्यक्ति द्वारा दायर इस तरह के मामले की स्वीकार्यता नहीं है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी थी कि जहां मस्जिद निर्माण की बात कही गई है, वह कोई सरकारी जमीन नहीं है। यह एक ट्रस्ट की जमीन है। इसलिए वहां निर्माण कार्य पर आपत्ति निराधार है। इसके अलावा, अदालत के अनुसार, मामला त्रुटिपूर्ण है। इसलिए इस संबंध में कोई भी आवेदन पर विचार नहीं किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि, 6 दिसंबर काे अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस की तारीख पर मुर्शिदाबाद में हुमायूं कबीर ने इसी नाम से एक मस्जिद का शिलान्यास किया था। जब से हुमायूं ने मस्जिद स्थापना की तारीख की घोषणा की थी, तब से तृणमूल कांग्रेस ने विधायक से दूरी बना ली थी।
मस्जिद शिलान्यास को लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता का दावा था कि हुमायूं का मस्जिद निर्माण का प्रस्ताव असंवैधानिक है। उस समय भी उच्च न्यायालय ने उस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया था। दोनों न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि हुमायूं को कानून-व्यवस्था बनाए रखते हुए कार्यक्रम का आयोजन करना होगा। राज्य को भी कानून-व्यवस्था बनाए रखने का निर्देश दिया गया था।
यह मामला शुरू से ही विवादों में रहा है। बाबरी मस्जिद विध्वंस की सालगिरह पर इसी नाम से मस्जिद बनाने का फैसला काफी चर्चा में था। तृणमूल कांग्रेस ने भी इस मामले में हुमायूं कबीर से दूरी बनाई थी। हालांकि, अब उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह निजी जमीन पर निर्माण है और इस पर आपत्ति का कोई कानूनी आधार नहीं है।
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हिन्दुस्थान समाचार / धनंजय पाण्डेय