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कहा- लेन-देन विवाद में एससी-एसटी एक्ट का इस्तेमाल गलत
जोधपुर, 18 दिसम्बर (हि.स.)। राजस्थान उच्च न्यायालय ने निचली अदालत का 31 साल पुराना फैसला पलटा है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि दो व्यक्तियों के बीच निजी या व्यावसायिक लेन-देन के विवाद को एससी-एसटी एक्ट का रूप देना कानून का सरासर गलत इस्तेमाल है। जस्टिस फरजंद अली की अदालत ने रिपोर्टेबल जजमेंट में कहा कि अगर कोई घटना बंद दुकान या घर की चारदीवारी के भीतर होती है, तो उसे पब्लिक व्यू में नहीं माना जा सकता। जो इस एक्ट के लिए अनिवार्य शर्त है। कोर्ट ने 1994 में निचली अदालत की ओर से सुनाई गई सजा को रद्द करते हुए आरोपित शोरूम मालिक को बरी कर दिया।
उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपित (दुकानदार) द्वारा बकाया राशि की मांग करना कानूनी रूप से जायज था। निचली अदालत ने एक निजी विवाद में एससी-एसटी एक्ट के कड़े प्रावधान लागू करके कानून का गलत इस्तेमाल किया है। फैसले का सबसे अहम कानूनी पहलू पब्लिक व्यू की व्याख्या है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक्ट की धारा 3(1)(&) तभी लागू होती है, जब अपमानजनक घटना सार्वजनिक स्थान पर या जनता की नजरों के सामने हुई हो। कोर्ट ने नक्शा मौका का हवाला देते हुए कहा कि कथित घटना शोरूम के अंदर 'चारदीवारी के भीतर हुई थी। यह एक बंद जगह थी, जहां आम जनता की सीधी पहुंच या दृश्यता नहीं थी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि चूंकि घटना सार्वजनिक दृष्टि में नहीं थी, इसलिए एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध नहीं बनता।
यह है मामला
जोधपुर निवासी शिकायतकर्ता राजन सोलंकी ने 22 अगस्त 1991 को रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसमें बताया कि जोधपुर के ही पुंगलपाड़ा निवासी आरोपित बृजमोहन उर्फ राजा ने उन्हें जानबूझकर जाति का हवाला देते हुए अपमानित किया। धमकाया और शारीरिक रूप से हमला किया। शिकायत में आरोप लगाया गया कि यह आचरण एससी-एसटी एक्ट की धारा 3(1)(&) और आईपीएस की धारा 323 के तहत अपराध है। विवाद की असली वजह व्यावसायिक थी। राजन ने अप्रैल 1990 में बृज मोहन के शोरूम से बजाज कंपनी की बाइक लोन पर खरीदी थी, जो बजाज ऑटो फाइनेंस कंपनी लिमिटेड से लोन पर ली थी। सोलंकी ने मासिक किस्तों का भुगतान नहीं किया। उनके कई चेक बाउंस हो गए, जो ट्रायल के दौरान स्वीकृत तथ्य हैं।
इस दौरान बाइक का एक्सीडेंट हो गया। उसे बृज मोहन के शोरूम में रिपेयरिंग के लिए लाया गया। रिपेयरिंग का खर्च लगभग 10 हजार रुपए आया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, जब राजन बाइक लेने गए तो उन्होंने डिमांड ड्राफ्ट से भुगतान की पेशकश की, जिसे बृज मोहन ने मना कर दिया। कैश या चेक में भुगतान की मांग की। आरोप है कि इसी बातचीत के दौरान बृज मोहन ने राजन को उनकी जाति का हवाला देकर अपमानित किया और शोरूम से बाहर धक्का दे दिया।
जांच के बाद ट्रायल के दौरान अभियोजन पक्ष ने सात गवाह पेश किए और दस्तावेजी साक्ष्य दिए। बचाव पक्ष ने तीन गवाह और 12 दस्तावेज पेश किए। गत 19 सितंबर 1994 को स्पेशल जज ने बृज मोहन को दोनों धाराओं के तहत दोषी ठहराया। छह महीने की साधारण कैद और 1500 रुपये जुर्माना की सजा सुनाई गई। इसी फैसले के खिलाफ बृज मोहान ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश