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जयपुर, 18 दिसंबर (हि.स.)। भारतीय सभ्यता और संस्कृति हज़ारों वर्षों से अपने मूल्यों के साथ मौजूद है। यह समूची दुनिया में अलग-अलग रूपों में फैली हुई है। चाहे वह बाल्टिक क्षेत्र हो या रोम। यहाँ के लोग भारत के साथ अपना जुड़ाव महसूस करते हैं। ये बातें मेजर (रिटायर्ड) एस.एस. माथुर ने हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित साप्ताहिक व्याख्यान श्रृंखला के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रम के दौरान कहीं।
मेजर माथुर को 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान असाधारण साहस और वीरता के लिए जाना जाता है। सेना से सेवानिवृत्त होने बाद उन्होंने भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने के लिए दुनिया भर के देशों में भ्रमण किया। वहां उन्होंने भारतीय संस्कृति के मूल स्रोतों और साझा मूल्यों की पहचान करते हुए विश्व शान्ति और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के विचार के लिए काम किया।
मेजर एस. एन. माथुर ने यूरोप के बाल्टिक क्षेत्र में लिथुआनिया जैसे देश का उदाहारण देते हुए बताया कि वहां के लोग अपने आपको भारतीय मूल के बताते हैं और भारतीय संस्कृति के समान ही आज भी अग्नि पूजा करते हैं। उनकी विवाह पद्धति भी हमारे देश के जैसी ही है, जिसमें वे अग्नि के सामने फेरे लेते हैं। लिथुआनिया के लोग भारत को अपनी दूसरी मातृभूमि का दर्जा देते हैं।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. नन्द किशोर पाण्डेय ने मेजर माथुर का स्वागत करते हुए कहा कि उन्होंने भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने और इसके विस्तार को समझाने के लिए लगभग 100 देशों की यात्राएं की हैं। इस दौरान उन्होंने इन देशों में मौजूद भारतीय संस्कृति के साथ समानता के विशिष्ट पहलुओं का अच्छा अध्ययन किया है। कार्यक्रम का संचालन अकादमिक और प्रशासनिक समन्वयक डॉ. रतन सिंह शेखावत ने किया। इस अवसर पर मेजर माथुर ने विद्यार्थियों के सवालों के भी जवाब दिए।
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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश