हाईकोर्ट ने जूनियर वकील की पत्नी को देय भरण-पोषण राशि घटाई
--जिला कोर्ट में शुरुआती दौर के वकीलों की आय बेहद सीमित : हाईकाेर्ट प्रयागराज, 18 दिसम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए कि जिला कोर्ट में वकालत के शुरुआती वर्षों में अधिकांश वकील पर्याप्त आय अर्जित करने में संघर्ष करते हैं और गंभी
इलाहाबाद हाईकाेर्ट


--जिला कोर्ट में शुरुआती दौर के वकीलों की आय बेहद सीमित : हाईकाेर्ट

प्रयागराज, 18 दिसम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए कि जिला कोर्ट में वकालत के शुरुआती वर्षों में अधिकांश वकील पर्याप्त आय अर्जित करने में संघर्ष करते हैं और गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करते हैं। एक जूनियर वकील द्वारा अपनी पत्नी को दी जाने वाली भरण-पोषण राशि को कम कर दिया।

जस्टिस मदन पाल सिंह की पीठ ने फैमिली कोर्ट, पीलीभीत के उस आदेश में आंशिक संशोधन किया, जिसमें वकील पति को अपनी पत्नी को प्रतिमाह 5,000 रुपये भरण-पोषण के रूप में देने का निर्देश दिया गया था।

हाईकोर्ट ने माना कि वकील पति की “अनिश्चित और उतार-चढ़ाव वाली आय” को देखते हुए यह राशि अत्यधिक थी। यह आदेश पति हीरालाल द्वारा दाखिल आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर कोर्ट द्वारा पारित किया गया, जिसमें उसने 16 मई को पारित फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।

याचिकाकर्ता का कहना था कि उसने वर्ष 2016 में एलएलबी पूरी की और वर्तमान में जिला कोर्ट में वकालत कर रहा है। साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रहा है। पति की ओर से दलील दी गई कि उसकी आय स्थिर नहीं है। कई दिनों में उसे मात्र 300 से 400 रुपये की कमाई होती है, जबकि कुछ दिनों में कोई आय नहीं होती। ऐसी स्थिति में उसके लिए अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी करना भी कठिन हो जाता है।

वहीं पत्नी की ओर से इस दावे का विरोध करते हुए कहा गया कि पति की आय अच्छी है और उसके पास भूमि तथा किराये की सम्पत्ति भी है। हालांकि, न्यायालय ने पाया कि पत्नी द्वारा पति की स्थिर और पर्याप्त आय के संबंध में कोई ठोस दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया। हाईकोर्ट ने इस अवसर पर कानूनी पेशे की वास्तविकताओं पर न्यायिक संज्ञान लेते हुए टिप्पणी की कि यह सर्वविदित तथ्य है कि जिला कोर्ट में वकालत के शुरुआती चरण में अधिकांश वकील पर्याप्त आय नहीं कमा पाते और उन्हें गंभीर आर्थिक संकट से गुजरना पड़ता है।

अदालत ने कहा कि जब पति की आय अनिश्चित और अस्थिर हो, तो भरण पोषण की राशि उसकी भुगतान क्षमता के अनुरूप और उचित होनी चाहिए। इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि ट्रायल कोर्ट द्वारा तय की गई भरण-पोषण राशि पति की वास्तविक आर्थिक स्थिति के अनुरूप नहीं है। परिणामस्वरूप, अदालत ने पुनरीक्षण याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए मासिक भरण-पोषण की राशि 5,000 रुपये से घटाकर 3,750 रुपये कर दी, जो आवेदन की तिथि से प्रभावी होगी।

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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे