राष्ट्रीय लोक अदालत के दिन विवाद, अधिवक्ताओं का 21 दिसंबर तक पेन डाउन का ऐलान
पुरुलिया, 16 दिसंबर (हि. स.)। न्याय प्राप्ति का त्वरित मंच मानी जाने वाली राष्ट्रीय लोक अदालत के दिन ही पुरुलिया में तीखा विवाद खड़ा हो गया। अदालत के कामकाज में कथित बाधा, अधिवक्ताओं की भूमिका को दरकिनार किए जाने और प्रशासनिक व्यवस्था को लेकर नाराज
पुरुलिया कोर्ट परिसर में पेन डाउन आंदोलन


पुरुलिया, 16 दिसंबर (हि. स.)। न्याय प्राप्ति का त्वरित मंच मानी जाने वाली राष्ट्रीय लोक अदालत के दिन ही पुरुलिया में तीखा विवाद खड़ा हो गया। अदालत के कामकाज में कथित बाधा, अधिवक्ताओं की भूमिका को दरकिनार किए जाने और प्रशासनिक व्यवस्था को लेकर नाराजगी जताते हुए पुरुलिया जिला बार एसोसिएशन ने 21 दिसंबर तक पेन डाउन आंदोलन का निर्णय लिया है। इस फैसले से जिले की कई अदालतों का नियमित कामकाज प्रभावित हुआ है।

बार सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रीय लोक अदालत के दौरान मामलों के निपटारे की प्रक्रिया में अधिवक्ताओं की राय और पेशागत गरिमा की अनदेखी की गई। कई अधिवक्ताओं का आरोप है कि समझौते के नाम पर जल्दबाजी में मामलों को निपटाने का दबाव बनाया गया, जिससे न्याय के मूल सिद्धांतों पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

पुरुलिया जिला बार एसोसिएशन ने स्पष्ट किया कि लोक अदालत स्वैच्छिक समाधान का मंच है, जहां किसी भी पक्ष पर दबाव बनाना या एकतरफा निर्णय लेना कानूनन उचित नहीं है। बावजूद इसके, व्यवहार में ऐसी स्थिति बन रही है जिसमें अधिवक्ताओं की सक्रिय भूमिका सीमित की जा रही है। इसी के विरोध में पेन डाउन का रास्ता अपनाना पड़ा।

बार एसोसिएशन के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि लोक अदालत कोई “फास्ट फूड काउंटर” नहीं है, जहां केवल शीघ्र निपटारे के नाम पर न्याय को हल्का कर दिया जाए। अधिवक्ताओं के बिना न्यायिक प्रक्रिया अधूरी है। यह आंदोलन पेशागत सम्मान की रक्षा के लिए है।

पेन डाउन का असर आम लोगों पर भी पड़ा है। कई मामलों की सुनवाई टल गई है और न्यायालय परिसर से निराश होकर लौटना पड़ रहा है। हालांकि बार एसोसिएशन का कहना है कि यह असुविधा अस्थायी है और दीर्घकाल में न्याय व्यवस्था की पारदर्शिता व गरिमा बनाए रखने के लिए जरूरी कदम है।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि लोक अदालत भारतीय न्याय व्यवस्था का महत्वपूर्ण वैकल्पिक मंच है, जहां कम समय और कम खर्च में मामलों का निपटारा होता है। लेकिन यदि प्रक्रिया सहभागितापूर्ण न हो, तो उसकी विश्वसनीयता प्रभावित होती है। पुरुलिया की घटना को इसी व्यापक समस्या का उदाहरण माना जा रहा है।

फिलहाल प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन न्यायालय सूत्रों का संकेत है कि बातचीत के जरिए समाधान की कोशिश हो सकती है।

21 दिसंबर तक चलने वाले इस पेन डाउन का आगे क्या रुख होगा, इस पर जिले के अधिवक्ता समुदाय के साथ-साथ आम न्यायप्रार्थियों की भी नजर बनी हुई है।

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हिन्दुस्थान समाचार / अभिमन्यु गुप्ता