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पुरुलिया, 16 दिसंबर (हि. स.)। कारखानों में यदि चोरी की कोई घटना होती है तो उसकी जांच कानून के दायरे में रहकर ही होनी चाहिए। चोरी की आड़ में संविदा या अस्थायी कर्मियों को संदेह के घेरे में लाना, उन्हें डराना या बदनाम करना किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है। यह कड़ा संदेश आदिवासी कुरमी समाज की ओर से दिया गया है।
हाल के दिनों में जिले के कई कारखानों में चोरी की घटनाओं के बाद यह आरोप सामने आए हैं कि जांच के नाम पर संविदा कर्मियों पर दबाव बढ़ाया जा रहा है।
कर्मियों का दावा है कि पूछताछ के बहाने उन्हें सामाजिक रूप से अपमानित किया जा रहा है और कार्यस्थलों पर भय का माहौल बनाया जा रहा है, ताकि वे अपनी बात न उठा सकें। इन परिस्थितियों में कुरमी समाज ने खुलकर कर्मियों के साथ खड़े रहने की घोषणा किया है।
आदिवासी कुरमी समाज के प्रमुख प्रतिनिधि अजीत महतो ने कहा कि श्रम कानूनों के तहत संविदा कर्मियों को भी उनके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। यदि प्रशासन या प्रबंधन यह भूल जाता है, तो समाज उन्हें याद दिलाने के लिए बाध्य होगा। चोरी की किसी भी घटना में उचित रास्ता पुलिस प्रशासन की मदद लेना है, न कि बेवजह कर्मियों पर दोष मढ़ना।
उन्होंने कहा कि संविदा कर्मियों को पहले से ही अपराधी मान लेना एक खतरनाक सोच है। इससे न केवल कर्मियों का अपमान होता है, बल्कि उनके परिवार और पूरे समाज को भी नीचा दिखाया जाता है। जांच पूरी होने से पहले ही शक के नजरिए से देखना सीधे तौर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
कुरमी समाज ने स्पष्ट किया कि कर्मियों की आजीविका और सामाजिक गरिमा की रक्षा करना उसकी मानवीय जिम्मेदारी है। यदि किसी ने डराकर कर्मियों की आवाज दबाने की कोशिश की, तो समाज चुप नहीं बैठेगा। जरूरत पड़ी तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी और प्रशासन को ज्ञापन सौंपा जाएगा।
श्रम संगठनों ने भी कुरमी समाज के इस रुख का स्वागत किया है। उनका कहना है कि संविदा कर्मी पहले ही सबसे अधिक असुरक्षा में काम करते हैं। स्थायी कर्मचारियों जैसी सुरक्षा न होने के कारण वे आसानी से निशाना बनाए जाते हैं और दोषारोपण की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
अजीत महतो ने जोर देकर कहा कि विकास का मतलब सिर्फ उत्पादन बढ़ाना नहीं है। विकास का असली अर्थ है मानव गरिमा की रक्षा। जिन कर्मियों के परिश्रम से उद्योग चलता है, उनका अपमान करके कोई भी उद्योग लंबे समय तक टिक नहीं सकता।
इस पूरे घटनाक्रम में प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। श्रमिक संगठनों ने मांग की है कि किसी भी जांच प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाया जाए। किसी भी स्थिति में कर्मी की सामाजिक पहचान या अस्थायी स्थिति को जांच का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए।
अंत में कुरमी समाज ने अपना रुख साफ कर दिया है कि संविदा कर्मी अकेले नहीं हैं। समाज उनके साथ खड़ा है और उनकी आजीविका व गरिमा की रक्षा की लड़ाई में किसी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा।
हिन्दुस्थान समाचार / अभिमन्यु गुप्ता