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अजमेर, 16 दिसम्बर(हि.स.)। राजस्थान के अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के 814 वें सालाना उर्स में मजार शरीफ पर गुस्ल की रस्म और उर्स की महफिल की सदारत के मुद्दे पर खादिमों और दरगाह दीवान एवं जिला प्रशासन के बीच एक राय नहीं बन पा रही है। जिला प्रशासन जो भी कानून सम्मत होगा वह करना चाहता है तो खादिम परंपरा के अनुसार रस्म बनाए रखना चाहते हैं किन्तु वे दीवान के रहते उनके उत्तराधिकारी से रस्म अदा कराने के पक्ष में नहीं है। जोरदार बात है कि खादिमों की संस्थाओं ने उर्स के दौरान जायरीन की ओर से पेश किए जाने वाले नजराने व दान को भी क्यूआर कोड के माध्यम से जमा करने के लिए दरगाह कमेटी की ओर से जगह जगह चस्पा किए गए क्यूआर कोड के पोस्टर का भी खुल कर विरोध करना शुरू कर दिया है।
इस तरह गतिरोध के चलते 17 दिसंबर को सायं अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह के बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ाया जाएगा। इस दौरान 25 तोपों की सलामी दी जाएगी। उर्स की यही अनौपचारिक शुरुआत कहलाएगी।
ख्वाजा का छह दिवसीय सालाना उर्स का आगाज धार्मिक दृष्टि से रजब का चांद दिखने पर 21 दिसंबर से होगा। उर्स में देश—विदेश से लाखों जायरीन जियारत के लिए अजमेर आते हैं। यहां उर्स के छहों दिन दरगाह शरीफ के महफिल खाने में देश विदेश के नामी कव्वाल सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की शान में कव्वालियां प्रस्तुत करते हैं यह दौरा पूरी रात चला करता है। दरगाह की मस्जिदों में धार्मिक चर्चाएं होती हैं।
दरगाह से जुड़े खादिमों और दरगाह दीवान एवं दरगाह कमेटी के बीच आपसी खींचतान के कारण इस बार मसला कुछ ज्यादा ही गंभीरता से गहराता जा रहा है।
एक ओर जहां उर्स झंडा चढ़ाने के लिए भीलवाड़ा से मोहम्मद गौरी खानदान के लोग अजमेर शरीफ पहुंच गए हैं। गौरी परिवार के फकरुद्दीन गौरी ने बताया कि बुधवार की शाम को उर्स का झंडा चढ़ाने की तैयारी पूरी कर ली गई है। उर्स का झंडा जुलूस के साथ दरगाह गेस्ट हाउस से गाजे बाजे व कव्वाली के साथ बुलंद दरवाजे पर पेश किया जाएगा। इस दौरान 25 दफा तोप की सलामी दी जाएगी। उर्स का झंडा चढ़ाने की रस्म वर्ष 1928 में सैयद अब्दुल सततार बादशाह जाने ने शुरू की थी। उसके बाद 1928 से 1991 तक यह रस्म उनके दादा मोहम्मद गौरी ने इसके बाद उनके बाद 2006 तक उनके पिता मोइनुद्दीन गौरी ने झंडा चढ़ाया था। उन्होंने शुक्रिया अदा किया कि अब उन्हें उर्स का झंडा चढ़ाने का अवसर मिल रहा है।
गौरतलब है कि सालाना उर्स के महत्व को इसी से समझा जा सकता है कि देश के प्रधानमंत्री और अधिकांश राज्यों के मुख्यमंत्री उर्स में अपनी ओर से सूफी परंपरा के अनुरूप ख्वाजा साहब की मजार पर चादर भेजते हैं। इस बार यह विवाद भी खड़ा हो गया है कि दरगाह में संकट मोचक महादेव मंदिर होने का वाद लंबित रहते संवैधानिक पदों की चादर पेश नहीं की जाए।
राष्ट्रीय हिन्दू सेना के दावे के दृष्टिगत राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अदालत में वाद पेश कर उर्स के अवसर पर पीएम व सीएम एवं अन्य संवैधानिक पदों की चादर पेश नहीं करने को लेकर दायर वाद पर भी बुधवार 17 दिसम्बर को सुनवाई होनी है। न्यायालय ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलात मंत्रालय और दरगाह कमेटी के वकीलों की उपस्थिति में 17 को सुनवाई तय की हुई है।
असल में ख्वाजा साहब की दरगाह में आने वाले चढ़ावे को लेकर खादिम समुदाय और दरगाह दीवान के बीच विवाद चला आ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश दे रखे हैं कि प्राप्त चढ़ावे की आधी राशि दरगाह दीवान को दी जाए। हालांकि पूर्व में एक समझौते के तहत खादिम समुदाय दीवान आबेदीन को सालाना दो करोड़ रुपये की राशि देता है। लेकिन अभी भी चढ़ावे का विवाद थमा नहीं है, इसलिए केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली दरगाह कमेटी ने दरगाह परिसर में क्यूआर कोड के स्टीकर जगह जगह चिपकाए है। ताकि आने वाले जायरीन चढ़ावा ऑनलाइन दे सके। इन स्टीकारों पर भी दरगाह के खादिमों को कड़ा ऐतराज है। खादिमों को पहचान पत्र (लाइसेंस) देने के मामले को लेकर भी विवाद पहले ही चल रहा है।
देग का ठेका:
दरगाह परिसर में जो बड़ी देग लगी है उसमें आने वाले चढ़ावे (नगद राशि, सोना-चांदी, खाद्य सामग्री आदि) का ठेका दिया जाता है। यूं तो यह ठेका वर्ष भर का होता है, लेकिन सालाना उर्स के मौके पर 15 दिन के लिए ठेका अलग से दिया जाता है। इस बार उर्स के 15 दिन का ठेका चार करोड़ 30 लाख रुपये में दिया गया है। ठेका राशि खादिमों की संस्था अंजुमन द्वारा ही ली जाती है। ठेका भी किसी खादिम को ही दिया जाता है। उर्स में 15 दिन का यह ठेका 16 दिसंबर की रात 12 बजे बाद से शुरू हो जाएगा। मालूम हो कि इसी देग में चावल के तौर पर तबर्रुक भी तैयार किया जाता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / संतोष