गोवंश के अवशेष मामले में गिरफ्तार अनीस के खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही पर रोक
प्रयागराज, 10 दिसम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मेरठ के परतापुर थाने में उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम 1955 की धारा 3/8, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के मुकदमे में आरोपी अनीस के खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगा दी है। यह आदेश न्
इलाहाबाद हाईकाेर्ट


प्रयागराज, 10 दिसम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मेरठ के परतापुर थाने में उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम 1955 की धारा 3/8, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के मुकदमे में आरोपी अनीस के खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगा दी है।

यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव लोचन शुक्ल ने अनीस की याचिका पर उसके अधिवक्ता और सरकारी वकील को सुनकर दिया है। याची के एडवोकेट ने मुकदमे की सम्पूर्ण कार्यवाही रद्द करने के लिए दाखिल याचिका पर बहस में कहा कि मजिस्ट्रेट अदालत ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि काले जानवर के अवशेषों के सम्बंध में कोई जांच रिपोर्ट रिकॉर्ड पर उपलब्ध नहीं है। जबकि उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम 1955 की धारा 3/8 के प्रावधान के तहत यह होना चाहिए था।

अधिवक्ता ने कहा कि आरोप पत्र में 12 गवाहों का उल्लेख है और उनमें से शिकायतकर्ता के बयान को छोड़कर अन्य गवाह औपचारिक हैं। सरकारी वकील ने भी बताया कि प्रथम सूचनाकर्ता को छोड़कर अन्य गवाह पुलिसकर्मी हैं, जो अभियुक्त की गिरफ्तारी के गवाह हैं। उन्होंने पाए गए जानवरों के अवशेषों के सम्बंध में कोई जांच रिपोर्ट रिकॉर्ड पर उपलब्ध नहीं होने की बात भी कही। इस पर अधिवक्ता ने कहा है कि जब तक यह निर्धारित नहीं हो जाता कि पाया गया शव-जानवर का अवशेष वास्तव में उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम 1955 की धारा 3 में यथा-प्रावधानित गाय, बैल, बछड़े का है, तब तक याची के विरुद्ध धारा 3 के तहत अपराध के लिए कोई अभियोजन शुरू नहीं किया जा सकता।

उन्होंने यह भी कहा कि सह अभियुक्त और याची के इकबालिया बयान को छोड़कर कोई अन्य कानूनी रूप से स्वीकार्य साक्ष्य नहीं है। यहां तक कि शिकायतकर्ता ने भी अपने बयान में इस पर संदेह व्यक्त किया है कि शव- जानवर का अवशेष गाय का है या भैंस का। अधिवक्ता ने कहा कि जब तक यह निर्धारित नहीं हो जाता कि पाए गए जानवर के अवशेष गाय के थे या भैंस के, तब तक उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम 1955 की धारा 3 के तहत अभियोजन कानून की नजर में त्रुटिपूर्ण है।

कोर्ट ने मामले को विचारणीय मानते हुए सरकारी वकील से तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा और याची को उसके बाद दो सप्ताह के भीतर प्रति उत्तर शपथपत्र दाखिल करने को कहा। साथ ही अगली सुनवाई तक, याची के खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगा दी।

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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे