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—थलैयाट्टी बोम्मई तमिलनाडु का पारम्परिक शिल्प,डिजास्टर प्रूफ हिलने-डुलने वाली गुड़िया की देश—विदेश में पहचान
वाराणसी,10 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में चल रहे काशी तमिल संगमम के चौथे संस्करण में नमो घाट पर आयोजित सांस्कृतिक प्रदर्शनी में तमिल थंजावुर की पारंपरिक ‘थलैयाट्टी बोम्मई’ (हिलने-डुलने वाली गुड़िया) कला लोगों को लुभा रही है। प्रदर्शनी के स्टॉल संख्या–28 ‘थंजावुर थलैयाट्टी बोम्मई’ पारंपरिक हस्तशिल्प प्रेमियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इस स्टॉल के संचालक तमिलनाडु के थंजावुर निवासी हरि प्रसंथ बूपाथी ने बताया कि वे पहली बार वाराणसी में आए है और अपने साथ दक्षिण भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भी लाए है।
उन्होंने बताया कि थलैयाट्टी बोम्मई (हिलने-डुलने वाली गुड़िया) का यह पारंपरिक शिल्प उनके परिवार की छठी पीढ़ी संरक्षित और संवर्धित कर रही है। यह कला पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है और आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी है। उन्होंने बताया कि कि इन गुड़ियों का वे अमेरिका, कनाडा सहित कई देशों में निर्यात करते हैं। इन पारंपरिक गुड़ियों की विशेषता यह है कि ये थंजावुर के बृहदीश्वर मंदिर की स्थापत्य शैली से प्रेरित हैं और उसी की तरह आपदा-प्रतिरोधक (डिजास्टर प्रूफ) मानी जाती हैं। मुख्य रूप से ये गुड़ियां राजा–रानी की आकृतियों पर आधारित होती हैं, जो दक्षिण भारतीय संस्कृति और शाही परंपरा को जीवंत रूप में प्रस्तुत करती हैं।
कलाकार ने बताया कि वे स्कूलों, कॉलेजों में कार्यशालाओं के माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान करते हैं तथा केंद्र सरकार के हस्तशिल्प प्रशिक्षण मंच पर सरकारी मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण केंद्र भी संचालित करते हैं। उनका संपूर्ण व्यवसाय बी2बी मॉडल पर आधारित है और वे थंजावुर में इस कला के प्रमुख उद्यमियों में गिने जाते हैं। कॉरीगर के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर शिक्षा मंत्रालय ने काशी तमिल संगमम् का आयोजन कर यह मंच उपलब्ध कराया। इस मंच के माध्यम से उन्हें पहली बार वाराणसी आने, देश के विभिन्न हिस्सों की कलाओं को देखने–समझने तथा अपनी पारंपरिक कला को उन लोगों तक पहुँचाने का अवसर मिला, जो अब तक इस शिल्प से परिचित नहीं थे। उन्होंने बताया कि उनके पिता को कई राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं । और उनकी बनाई गई थलैयाट्टी बोम्मई गुड़ियाँ कई विधायकों एवं मुख्यमंत्रियों को भेंट की जा चुकी हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी