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--याची पति की एसीजेएम कोर्ट से जारी सम्मन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
प्रयागराज, 10 दिसम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भरण पोषण की राशि अदा करने से बचने के लिए फर्जी बैंक स्टेटमेंट दाखिल करने वाले पति की याचिका खारिज़ कर दी है। कोर्ट ने कहा कि फर्जी दस्तावेज दाखिल करना न्यायिक प्रक्रिया की ईमानदारी बनाए रखने के सिद्धांत पर सीधा हमला है और यह कानून का अपमान है।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने गौतम बुद्ध नगर के गौरव मेहता की याचिका खारिज़ करते हुए की है। याची ने याचिका दाखिल कर गौतम बुद्ध नगर की एसीजेएम कोर्ट से जारी सम्मन को चुनौती दी थी।
याचिका के अनुसार वर्ष 2007 में याची का पहली पत्नी से तलाक हो गया। उसके बाद पत्नी ने अपने व नाबालिग बेटे के लिए भरण पोषण के लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अर्जी दी। भरण पोषण मामले की कार्रवाई के दौरान परिवार न्यायालय ने याची को आमदनी का रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया। उसे खासतौर पर पिछले तीन साल का इनकम टैक्स रिटर्न, बैंक अकाउंट डिटेल्स, फिक्स्ड डिपॉजिट या बॉन्ड और दूसरी चल सम्पत्ति व सैलरी स्लिप दाखिल करने का निर्देश दिया गया। पति ने अपने बैंक अकाउंट का स्टेटमेंट हलफनामे के साथ दाखिल किया, जिसमें कहा गया कि उनके पास कोई गाड़ी या कोई दूसरी अचल सम्पत्ति नहीं है। पत्नी ने उसे फर्जी दस्तावेज बताते हुए याची के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी।
आरोप लगाया पति ने असली आमदनी छिपाते हुए अदालत को गुमराह करने के लिए फर्जी दस्तावेज बनवाए। पूछताछ के दौरान पुलिस को ओरिजिनल बैंक स्टेटमेंट मिला और पता चला कि भरण पोषण की रकम देने से बचने के लिए अदालत में जमा किए गए बैंक स्टेटमेंट से कई एंट्री हटा दी गईं ताकि याची की सही आमदनी छिपाई जा सके। पुलिस ने याची के खिलाफ आईपीसी की धारा 466 के तहत चार्जशीट दाखिल कर दी। जिस पर अदालत ने उसे सम्मन जारी किया। याचिका में इस सम्मन आदेश को चुनौती दी गई थी।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे