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हल्द्वानी, 3 नवंबर (हि.स.)। आत्ममंथन केवल साधारण सोचने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि अपने भीतर झांकने की साधना है जो परमात्मा के अहसास से सरल हो सकती है।’’ यह उद्गार निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने 78वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के दूसरे दिन उपस्थित विशाल मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए।
इस चार दिवसीय संत समागम में देश-विदेश से लाखों की संख्या में मानव परिवार एकत्रित हुआ है और सौहार्दपूर्ण व्यवहार से मानवता एवं विश्वबंधुत्व का दृश्य साकार कर रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार / अनुपम गुप्ता