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बगदाद, 03 नवंबर (हि.स.)। इराक के प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी ने कहा है कि देश में सभी हथियारों को राज्य के नियंत्रण में लाने का वादा तभी पूरा किया जा सकता है जब अमेरिकी नेतृत्व वाला गठबंधन पूरी तरह से इराक से हट जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि अमेरिकी सेना की उपस्थिति के रहते किसी भी सशस्त्र गुट को निशस्त्र करना व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि कई इराकी गुट अब भी अमेरिका को कब्जा करने वाली शक्ति के रूप में देखते हैं।
सुदानी ने रायटर से बातचीत में कहा कि बहुराष्ट्रीय एंटी-आईएसआईएस गठबंधन को सितंबर 2026 तक पूरी तरह से इराक छोड़ देना चाहिए, क्योंकि अब इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) का खतरा काफी कम हो गया है। उन्होंने कहा, “अब कोई आईएसआईएस नहीं है। सुरक्षा और स्थिरता है, तो फिर 86 देशों वाले गठबंधन की मौजूदगी का क्या औचित्य है?”
प्रधानमंत्री ने कहा कि जैसे ही विदेशी सैनिक चले जाएंगे, सरकार के पास एक स्पष्ट योजना होगी जिसके तहत “राज्य संस्थानों के बाहर कोई हथियार नहीं रहेगा।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि गुटों के पास विकल्प होगा — या तो वे आधिकारिक सुरक्षा बलों में शामिल हो जाएं या फिर राजनीति में प्रवेश करें।
‘इराक को कोई युद्ध में नहीं घसीट सकता’
सुदानी ने कहा कि इराक किसी भी कीमत पर क्षेत्रीय संघर्ष का हिस्सा नहीं बनेगा। “इराक की स्थिति लेबनान से अलग है। यहाँ सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखना सर्वोच्च प्राथमिकता है। युद्ध और शांति पर निर्णय केवल राज्य संस्थाएं लेंगी — कोई भी बाहरी ताकत इराक को संघर्ष में नहीं खींच सकती।”
इराक इन दिनों एक नाजुक संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है — एक ओर अमेरिका चाहता है कि बगदाद ईरान समर्थित सशस्त्र समूहों, खासकर पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्सेस (PMF) से जुड़े गुटों को पूरी तरह खत्म करे, जबकि दूसरी ओर ईरान इराक का अहम सहयोगी है।
पीएमएफ को आधिकारिक तौर पर इराकी सुरक्षा बलों में शामिल किया गया है, लेकिन इसके कई गुट अब भी ईरान के नज़दीक माने जाते हैं।
अमेरिकी सेना की वापसी की योजना
इराक और अमेरिका के बीच समझौते के अनुसार, अमेरिकी सैनिकों की चरणबद्ध वापसी 2025 में शुरू हो चुकी है और 2026 के अंत तक पूरी होने की उम्मीद है।
सुदानी ने कहा कि विदेशी सैनिकों के जाने के बाद इराक स्वतंत्र रूप से अपनी सुरक्षा नीति लागू करेगा। उनका कहना है कि जब तक बाहरी ताकतें मौजूद हैं, तब तक घरेलू सशस्त्र गुटों को निशस्त्र करना “संभव नहीं।”
आर्थिक प्राथमिकता और वैश्विक संतुलन
2003 में सद्दाम हुसैन के पतन के बाद से ईरान का इराक पर प्रभाव काफी बढ़ा है। वहीं, इराक लगातार यह संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है कि अमेरिका और ईरान दोनों से उसके रिश्ते न बिगड़ें।
सुदानी ने कहा कि देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब आर्थिक पुनर्निर्माण और अमेरिकी निवेश को आकर्षित करना है, ताकि वर्षों से जारी सांप्रदायिक हिंसा और बेरोजगारी की स्थिति से बाहर निकला जा सके।
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हिन्दुस्थान समाचार / आकाश कुमार राय