अनूपपुर: पर्यावरण संतुलन पर मंडराया संकट: अमरकंटक वनीय क्षेत्र में साल बोरर कीट का बढ़ता प्रकोप, हजारों साल वृक्ष सूखे
साल वनों के क्षरण से नमी, शीतलता और जलस्रोतों पर पड़ सकता है गहरा असर
अमरकंटक में साल के  वृक्षो का जंगल


रामभूषण दास जी महाराज


अनूपपुर, 3 नवंबर (हि.स.)। मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में स्थित मॉ नर्मदा की पवित्र उद्गम स्थली अमरकंटक एक बार फिर पर्यावरण पर संकट की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। सघन वनों से आच्छादित इस क्षेत्र में साल बोरर नामक कीट रोग का प्रकोप तेजी से फैल रहा है, जिसके कारण हजारों साल वृक्ष सूखकर गिरने लगे हैं। यह स्थिति न केवल वनों के लिए, बल्कि पूरे अमरकंटक के पारिस्थितिक संतुलन के लिए खतरे की घंटी मानी जा रही है।

क्या होता है साल बोरर कीट

साल बोरर गुबरैले कीट की प्रजाति का है। बारिश की शुरुआत होती ही व्यस्त बाहर आते हैं, और समागम करते हैं। एक सप्ताह के अंदर ही मादा जीवित या मृत साल की शाखों और तनों पर बनी दरारों के अंदर गहराई में जाकर अंडे देती है। कुछ दिन में लार्वा जन्म लेते हैं और पेड़ के तने के छिलके में छेद करके लकड़ी खुरदते हुए तने के केंद्र तक लकड़ी को खाते हैं। गर्मी आने तक यह लार्वा लकड़ी कहते हैं, और पेड़ तने में छिद्र बनाकर वहीं प्यूपा में रूपांतरित होते हैं। इस घटना के एक महीने बाद अपरिपज्ञ गुबरैले अस्तित्व में आते हैं। पेड़ के तने के अंदर ही वे परिपज्ञ होने तक रहते हैं, और बारिश के मौसम में बाहर आते हैं। बाहर आने के कुछ दिनों में ही नर की समागम के बाद मृत्यु हो जाती है। मादा कीट थोड़े और सप्ताह तक अंडे देने के लिए जिंदा रहती हैं। इस प्रक्रिया से संक्रमित साल पेड़ की छाल के कारण मृत्यु हो जाती है। बड़े पैमाने पर अगर यह महामारी पेड़ों को लगे तो उससे जंगल को भारी हानि पहुंचती है। इस संकट के लिए संक्रमित पेड़ों को दूर करना जरूरी हो जाता है।

साल वृक्ष का महत्व और अमरकंटक का वन सौंदर्य

अमरकंटक क्षेत्र में साल वृक्षों का विस्तार लाखों की संख्या में फैला हुआ है। यह वृक्ष न केवल क्षेत्र की हरियाली और सौंदर्य का प्रतीक हैं, बल्कि स्थानीय जलवायु को नियंत्रित करने में भी बड़ी भूमिका निभाते हैं। साल वृक्षों की पत्तियाँ और छाया वायुमंडल में नमी बनाए रखती हैं, मिट्टी को कटाव से बचाती हैं, और वर्षा के जल को धरातल में समाहित कर भूजल स्तर को बढ़ाने में सहायक होती हैं। पर्यावरणविदों के अनुसार, साल वृक्षों के कारण अमरकंटक की जलवायु सामान्यतः शीतल और संतुलित रहती है। यहाँ की यही हरियाली नर्मदा, सोन और जोहिला जैसी नदियों के उद्गम स्रोतों की जीवनरेखा बनी हुई है।

अतीत का भयावह अनुभव

करीब 18-20 वर्ष पूर्व भी अमरकंटक और उसके आसपास के क्षेत्रों में साल बोरर रोग का भारी प्रकोप देखा गया था। उस समय वन विभाग को लाखों संक्रमित साल वृक्षों को काटना पड़ा था ताकि संक्रमण आगे न फैले। परिणामस्वरूप क्षेत्र का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ गया, नमी घट गई और कई स्थानों पर छोटे-छोटे जलस्रोत सूखने लगे थे। अब वही स्थिति फिर से सिर उठाती दिखाई दे रही है।

संत समाज की चिंता और अपील

शांति कुटी आश्रम के प्रमुख एवं संत मंडल अमरकंटक के अध्यक्ष रामभूषण दास जी महाराज ने इस पर गहरी चिंता करते हुए बताया कि हाल ही में भ्रमण के दौरान अमरकंटक एवं उससे सटे वन क्षेत्रों कपिलधारा मार्ग, कबीर चबूतरा क्षेत्र, खुरखुरी और मैकल पर्वत श्रृंखला के हिस्सों में हजारों की संख्या में सूखते साल वृक्ष देखे हैं। यह केवल एक वन रोग नहीं, बल्कि अमरकंटक के भविष्य से जुड़ा गंभीर प्रश्न है। यदि समय रहते वन विभाग और जिला प्रशासन ने रोकथाम के उपाय नहीं किए, तो आने वाले वर्षों में अमरकंटक की पहचान ‘हरित तीर्थ’ से ‘सूखा क्षेत्र’ में बदल सकती है। साल वृक्षों का नाश यहाँ की नदियों, जलस्त्रोतों और पर्यावरणीय संतुलन को सीधा प्रभावित करेगा। ”उन्होंने बताया कि इस विषय पर अनूपपुर कलेक्टर हर्षल पंचोली से मिल चुके हैं और वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को भी समस्या से अवगत कराया गया है।

कार्रवाई की आवश्यकता और वैज्ञानिक उपाय

विशेषज्ञों का कहना है कि साल बोरर का संक्रमण रोकने के लिए त्वरित फ्यूमिगेशन, फील्ड मॉनिटरिंग, और कीट नियंत्रण हेतु जैविक उपायों की आवश्यकता है। संक्रमित वृक्षों की समय पर पहचान और हटाने के साथ-साथ नए पौधारोपण की वैज्ञानिक योजना बनाना भी अत्यावश्यक है।

स्थानीय नागरिकों ने भी जिला प्रशासन से अपील की है कि अमरकंटक के साल वनों की रक्षा के लिए विशेष अभियान चलाया जाए, ताकि इस प्राकृतिक धरोहर को बचाया जा सके। अमरकंटक केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि भारत की जल और पर्यावरणीय धरोहर का जीवंत प्रतीक है। यहाँ के साल वृक्ष इस पवित्र भूमि की हरियाली और नमी के रक्षक हैं। यदि इन पर आई यह बीमारी नहीं रोकी गई, तो यह न केवल अमरकंटक बल्कि सम्पूर्ण मध्य भारत के पारिस्थितिक संतुलन को प्रभावित कर सकती है।

प्रभारी वनमंडाधिकारी (एसडीओ) ने बताया कि हमने जानकारी मांगी है आरो अमरकंटक से जानकारी मिलने के बाद इसकी जांच कराई जाएगी और जबलपुर से वैज्ञानिकों को बुलाकर इसकी जांच कराई जाएगी इसके बाद यह तय हो पाएगा कितने क्षेत्र में फैला हुआ है।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश शुक्ला