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जगदलपुर, 3 नवंबर (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के जंगलाें में पाये जाने वाले छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना को विलुप्ति के खतरे से बचाने के लिए कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान ने बड़ा कदम उठाया है। अब इस पक्षी की वंशवृद्धि और संरक्षण के लिए उसे जीपीएस टैग लगाकर ट्रैक किया जाएगा। इसी तरह, हाल ही में इंद्रावती टाइगर रिजर्व में दो गिद्धों को भी जीपीएस से लैस कर छोड़ा गया था। अब उसी मॉडल पर पहाड़ी मैना की निगरानी और व्यवहार अध्ययन की तैयारी की जा रही है।
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान में कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के जंगल में 600 से अधिक पहाड़ी मैना निवास कर रही हैं।
पहाड़ी मैना के टैगिंग के बाद उसकी हर गतिविधि को जीपीएस सिस्टम से ट्रैक किया जाएगा। एक विशेषज्ञ टीम लगातार इन पक्षियों की मूवमेंट, भोजन, विश्राम स्थल और प्रजनन प्रक्रिया का वैज्ञानिक तरीके से रिकॉर्ड रखेगी। रिसर्च टीम यह भी नोट करेगी कि मैना दिन में किस पेड़ पर जाती है, क्या खाती है और रात में कहां विश्राम करती है। इसके आधार पर आने वाले समय में प्रजनन केंद्रों में मैना की वंशवृद्धि प्रक्रिया को और बेहतर बनाया जाएगा। अब तक पहाड़ी मैना के नर-मादा की पहचान कर पाना विशेषज्ञों के लिए भी मुश्किल रहा है। इसी वजह से इनके प्रजनन और संरक्षण पर ठोस काम नहीं हो सका। लेकिन जीपीएस टैगिंग के माध्यम से अब इन पक्षियों की गतिविधियों, व्यवहार और जीवनशैली से जुड़ी सटीक जानकारी प्राप्त होगी।
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक नवीन कुमार ने बताया कि विभाग का मुख्य उद्देश्य पहाड़ी मैना की आबादी बढ़ाना और संरक्षण को सशक्त बनाना है। इसके लिए जंगलों और पहाड़ों में घूमने वाली मैना के पैरों में जीपीएस टैग लगाए जाएंगे, जिनकी निगरानी विभागीय अधिकारी स्वयं करेंगे।
उल्लेखनिय है कि छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना, जिसे अपनी मधुर आवाज़ और बोलने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध यह पक्षी छत्तीसगढ़ की पहचान और गौरव का प्रतीक है। काली चमकदार पंखुड़ियों, चमकीली पीली कलगी और नारंगी चोंच वाली यह आकर्षक पक्षी मुख्य रूप से घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है। राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना (Hill Myna), जिसे स्थानीय बोली में ‘कुलुम किलिल्ली’ भी कहा जाता है। यह पक्षी लगभग 25-30 सेंटीमीटर लंबा होता है और जोड़े में रहना पसंद करता है। इसकी सबसे अनोखी विशेषता है मानव स्वर की सटीक नकल करने की क्षमता। यह पक्षी आसपास सुनी गई आवाज़ों को, चाहे वे शब्द हों, सीटी हो या अन्य ध्वनियां, बेहद सटीकता से दोहरा सकती है।नियमित संवाद और प्रशिक्षित वातावरण में यह 20-30 शब्दों तक बोल सकती है। अपनी इस अनोखी क्षमता के कारण यह पक्षी प्रेमियों और शोधकर्ताओं के बीच बेहद लोकप्रिय है। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान, जो बस्तर क्षेत्र में स्थित है, पहाड़ी मैना का प्रमुख आवास माना जाता है। यह राज्य की प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता का प्रतीक मानी जाती है। इसकी पहचान राज्य की संस्कृति और पर्यावरणीय धरोहर से जुड़ी है।
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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे