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फतेहाबाद, 3 नवंबर (हि.स.)। कृषि विकास अधिकारी डॉ. अंकित ढिल्लों ने सोमवार को रबी सीजन में गेहूं की बिजाई करने वाले किसानों से सुपरसीडर तकनीक अपनाने की अपील की है। उन्होंने कहा कि धान की कटाई और बिजाई के बीच उचित प्रबंधन से फसल की बेहतर स्थापना होती है और पराली प्रबंधन भी सुचारू रूप से किया जा सकता है। कंबाइन में स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम का उपयोग किया जाए, ताकि फसल अवशेष खेत में समान रूप से फैल सकें और सुपरसीडर का संचालन बिना किसी रुकावट के हो सके। कृषि अधिकारी ने किसानों को बीज उपचार के महत्व के बारे में भी बताया और यह सुनिश्चित करने की सलाह दी कि बीज का उपचार सही क्रम में किया जाए। 40 किलोग्राम बीज हेतु बीजोपचार प्रक्रिया का पालन करें जिसमें कीट नियंत्रण के लिए क्लोरपाइरीफॉस 160 मि.ली. को 2 लीटर पानी में मिलाकर बीज पर छिडक़ाव करें और छाया में सूखा दें। रोग प्रबंधन के लिए रैक्सिल (टेबुकोनाजोल) 13 मि.ली. को 400 मि.ली. पानी में मिलाकर बीज उपचार करें। जैव उर्वरक का उपचार कम से कम 6 घंटे के अंतराल पर फफूंदनाशक से करें, 200 मि.ली. एजोटोबैक्टर और 200 मि.ली. फॉस्फोटीका (पीएसबी) का प्रयोग बिजाई से पहले करें। उन्होंने कहा कि उपचार का क्रम नहीं बदलना चाहिए, क्योंकि इससे कीट व रोग नियंत्रण तथा सूक्ष्मजीवी उर्वरकों की प्रभावशीलता कम हो सकती है। गुलाबी तना छेदक सुंडी के प्रकोप पर भी डॉ. ढिल्लों ने किसानों से सजग रहने की अपील की। उन्होंने बताया कि पहली सिंचाई से पहले रिजेंट (फिपरोनिल) ग्रेन्यूल 7 किलो को 20 किलो रेत में मिलाकर खेत में डालें और फिर पहली सिंचाई करें। यदि इसके बाद भी सुंडी का प्रकोप हो, तो कोराजन (क्लोरैन्ट्रानीलीप्रोल) 50 मि.ली. को 80-100 लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करें।
हिन्दुस्थान समाचार / अर्जुन जग्गा