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जोधपुर, 26 नवम्बर (हि.स.)। राजस्थान उच्च न्यायालय ने आरजेएस भर्ती मेें उम्र में छूट को लेकर दाखिल की गई याचिका पर अब केस को खारिज कर दिया। उसे औचित्यहीन बताया गया। याचिकाकर्ता छूट मांग कर भूल गया, इस बीच सात साल में कई न्यायाधीश बदल गए।
राजस्थान न्यायिक सेवा (आजेएस) भर्ती में केंद्रीय कर्मचारियों को उम्र में छूट देने की मांग से जुड़े इस मामले में जस्टिस इंद्रजीत सिंह और जस्टिस प्रवीर भटनागर की खंडपीठ ने 10 साल पुरानी इस याचिका (ललित कुमार बनाम रजिस्ट्रार जनरल) को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि समय बीतने के साथ अब इसका कोई औचित्य नहीं बचा है।
मामले की शुरुआत 2015 में हुई थी। जोधपुर निवासी ललित कुमार रक्षा मंत्रालय के अधीन रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन में कार्यरत थे। ललित कुमार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उनका सपना न्यायिक अधिकारी बनने का था, लेकिन उनकी उम्र आड़े आ रही थी। याचिकाकर्ता के वकील का तर्क था कि राजस्थान न्यायिक सेवा नियम-2010 के नियम-17 के तहत राज्य सरकार, पंचायत समिति, जिला परिषद और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के कर्मचारियों को अधिकतम आयु सीमा में 40 वर्ष तक (5 साल की छूट) का लाभ दिया जाता है। वकील ने सवाल उठाया कि केंद्रीय सरकार के कर्मचारी भी उसी तरह का प्रशासनिक अनुभव रखते हैं। फिर उनके साथ भेदभाव क्यों? वकील ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन बताया था और मांग की थी कि केंद्रीय कर्मचारियों को भी राज्य कर्मचारियों के समान छूट मिलनी चाहिए।
नियम बनाने का अधिकार न्योक्ता का :
उस समय हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से जवाब दिया गया था कि नियम बनाने का अधिकार नियोक्ता का है। उन्होंने तर्क दिया था कि आयु में छूट एक रियायत है, इसे अधिकार के रूप में नहीं मांगा जा सकता। प्रशासन का कहना था कि राज्य सरकार अपने कर्मचारियों को लाभ देने के लिए स्वतंत्र है और यह जरूरी नहीं कि वही लाभ केंद्र के कर्मचारियों को भी दिया जाए।
परीक्षा में बैठने की दी थी अनुमति :
इस केस का सबसे दिलचस्प पहलू 25 अगस्त 2015 का वह आदेश है, जिसने हजारों अभ्यर्थियों की उम्मीदें जगा दी थीं। तत्कालीन जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस जयश्री ठाकुर की डिवीजन बेंच ने ललित कुमार को अंतरिम आदेश के तहत परीक्षा में बैठने की अनुमति दी थी। जब रिजल्ट सील बंद लिफाफे में कोर्ट के सामने खोला गया तो पता चला कि ललित कुमार प्रीलिम्स (प्रारंभिक परीक्षा) की कट-ऑफ क्लियर नहीं कर पाए थे।
वकील 2018 को रहा आखिरी बार मौजूद :
कोर्ट की इतनी गंभीरता के बावजूद याचिकाकर्ता ने केस की पैरवी करना छोड़ दिया। इस केस के ऑनलाइन कोर्ट रिकॉर्ड गवाह हैं कि कैसे एक महत्वपूर्ण मुद्दा खुद याचिकाकर्ता की अनदेखी से समय की भेंट चढ़ गया। याचिकाकर्ता के वकील की उपस्थिति आखिरी बार 27 नवंबर 2018 के आदेश में दर्ज है।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश