संविधान को ‘आत्मार्पित’ करने से ही विकसित भारत की संकल्पना को साकार करना संभव - राज्यपाल हरिभाऊ बागडे
अजमेर, 26 नवम्बर (हि.स.)। महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर में संविधान दिवस के अवसर पर भव्य समारोह का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता राजस्थान के राज्यपाल एवं विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हरिभाऊ बागडे ने की। कार्यक्रम में अखिल भारतीय राष्
संविधान को ‘आत्मार्पित’ करने से ही विकसित भारत की संकल्पना को साकार करना संभव - राज्यपाल हरिभाऊ बागडे


संविधान को ‘आत्मार्पित’ करने से ही विकसित भारत की संकल्पना को साकार करना संभव - राज्यपाल हरिभाऊ बागडे


अजमेर, 26 नवम्बर (हि.स.)। महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर में संविधान दिवस के अवसर पर भव्य समारोह का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता राजस्थान के राज्यपाल एवं विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हरिभाऊ बागडे ने की। कार्यक्रम में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. नारायण लाल गुप्ता मुख्य वक्ता रहे, जबकि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेश कुमार अग्रवाल ने स्वागत उद्बोधन दिया।

राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने अपने संबोधन में कहा कि संविधान को ‘आत्मार्पित’ करने से ही विकसित भारत की संकल्पना को साकार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वह वर्ष 1946 से 1949 के बीच का कालखंड भारत के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण था, जब देश विभाजन, विस्थापन और नई शासन प्रणाली की स्थापना जैसी अनेक ऐतिहासिक परिस्थितियों से गुजर रहा था। उन्होंने संविधान सभा के गठन, उसके सदस्यों की भूमिका तथा विशेष रूप से डॉ. भीमराव अंबेडकर के अद्वितीय योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि संविधान की मजबूती और लचीलेपन की अनेक बार परीक्षा हो चुकी है। राज्यपाल ने कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370, पाकिस्तान द्वारा 22 अक्टूबर 1947 को किए गए आक्रमण, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के निर्माण तथा नियंत्रण रेखा के बन जाने जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख करते हुए राष्ट्रीय एकता और अखंडता बनाए रखने में संविधान की केंद्रीय भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी सहित अनेक स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों जैसे खुदीराम बोस, अनंत कान्हेरे, प्रफुल्ल चाकी और मदन लाल ढींगरा के बलिदान को स्मरण करते हुए कहा कि संविधान उन अनगिनत त्यागों की स्मृति और संकल्प का भी प्रतीक है।

मुख्य वक्ता प्रो. नारायण लाल गुप्ता ने कहा कि संविधान सभा ने यह स्पष्ट निर्णय लिया था कि भारत का संविधान केवल एक शुष्क विधिक दस्तावेज न रहकर भारत की प्राचीन आचार-संहिताओं की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा का आधुनिक उत्तराधिकारी बने। उन्होंने संविधान की मूल हस्तलिखित प्रति में 22 भागों में सम्मिलित 28 चित्रों की कलात्मक एवं सांस्कृतिक महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, विक्रमादित्य, शिवाजी और लक्ष्मीबाई जैसे महान व्यक्तित्वों के चित्र संविधान में इस रूप में अंकित हैं कि वे भारत की नेतृत्व क्षमता, मूल्यों और निरंतर बनी रही सांस्कृतिक धारा के प्रतीक बनते हैं। उन्होंने विशेष रूप से बंधुता शब्द के महत्व पर बल देते हुए कहा कि राष्ट्र की एकता और अखंडता की वास्तविक नींव बंधुता की उसी भावना में निहित है, जो हमें विद्यालयों में सिखाई जाने वाली यह प्रतिज्ञा - ‘समस्त भारतीय मेरे भाई-बहन हैं’ में भी दिखाई देती है। उन्होंने ने कहा कि नागरिक कर्तव्यों की अवधारणा भी इसी बंधुता की भावनात्मक आधारशिला पर खड़ी होती है। उन्होंने विश्वविद्यालय समुदाय से आह्वान किया कि वे संविधान के आदर्शों, न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता, को दैनिक आचरण में उतारकर भावी पीढ़ियों के लिए आदर्श स्थापित करें। उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना उसका दार्शनिक हृदय है, जो ‘हम भारत के लोग’ शब्दों से प्रारंभ होकर भारत को केवल भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक जीवंत, स्पंदित और सतत विकसित होने वाली सभ्यता के रूप में परिभाषित करती है।

कुलपति प्रो. सुरेश कुमार अग्रवाल ने अपने स्वागत उद्बोधन में डॉ. भीमराव अंबेडकर के उस प्रसिद्ध विचार का संदर्भ दिया कि कितना ही अच्छा संविधान क्यों न हो, यदि उसे लागू करने वाले लोग अच्छे न हों तो उसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे। उन्होंने उपस्थित युवाओं को विश्वविद्यालय से प्राप्त शिक्षा का उपयोग भारत के संविधान की भावना के अनुरुप भारत के विकास के लिए करना चाहिए ताकि वर्ष 2047 में हम विकसित राष्ट्र की संकल्पना को साकार कर सकें। कुलगुरु ने संविधान की संकल्पना को समझने के लिए विश्वविद्यालय में संविधान अभ्यास वर्ग आयोजित किए जाने का विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस अभ्यास वर्ग में संविधान निर्माण के अनछुए पहलुओं यथा महिलाओं की भूमिका (सभी 15 संविधान निर्मात्री महिला सदस्य जैसे हंसा मेहता, दक्षा पटेल, अमृत कौर आदि ) तथा समावेशी समाज के दृष्टिकोण पर विमर्श होना चाहिए। साथ ही इस वर्ग में डॉ. भीमराव अंबेडकर को संविधान शिल्पकार के रूप में केंद्रित करते हुए उनके चिंतन, प्रावधानों के निर्माण में उनकी वैचारिक भूमिका और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को संविधान में स्थापित करने के उनके योगदान पर विशेष सत्र आयोजित करने की विश्वविद्यालय की योजना है।

विश्वविद्यालय के कुलसचिव कैलाश चन्द्र शर्मा ने समारोह में राज्यपाल, मुख्य वक्ता, गणमान्य अतिथियों, शिक्षकों, अधिकारियों, कर्मचारियों, छात्रों तथा व्यवस्था में संलग्न सभी कर्मचारियों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से विश्वविद्यालय न केवल शैक्षिक उत्कृष्टता के प्रति, बल्कि संवैधानिक मूल्यों और राष्ट्रीय चेतना के संवर्द्धन के प्रति भी अपनी प्रतिबद्धता को प्रकट करता है।

इस अवसर पर राज्यपाल सहित उपस्थित अतिथियों ने विश्वविद्यालय द्वारा विगत तीन माह में किए गए कार्यों के न्यूज़ लैटर ‘त्रिवेणी’ का विमोचन भी किया।

समारोह से पूर्व राज्यपाल हरिभाऊ बागडे को गार्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया गया। इसके उपरांत उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर स्थित मां सरस्वती मंदिर में पूजन-अर्चन किया तथा संविधान पार्क स्थित भारत माता के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। समारोह में बड़ी संख्या में शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं आम नागरिक उपस्थित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / संतोष