भारतीय समस्याओं का समाधान भारतीय ज्ञान परम्परा से ही सम्भव : प्रो. श्वेतांशू भूषण
--भारतीय ज्ञान और समाज सुधारों में महिलाओं के योगदान अहम : प्रो.संगीता श्रीवास्तव--इविवि में ‘‘कंटेम्परेरी रिलेवेन्स आफ इंडियन नॉलेज सिस्टम एंड वूमेन्स इम्पावरमेंट’’ पर दो दिवसीय सेमिनार प्रयागराज, 26 नवम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बुध
सम्बोधित करते प्रो. श्वेतांशू भूषण


दीप प्रज्ज्वलन


--भारतीय ज्ञान और समाज सुधारों में महिलाओं के योगदान अहम : प्रो.संगीता श्रीवास्तव--इविवि में ‘‘कंटेम्परेरी रिलेवेन्स आफ इंडियन नॉलेज सिस्टम एंड वूमेन्स इम्पावरमेंट’’ पर दो दिवसीय सेमिनार

प्रयागराज, 26 नवम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बुधवार को महिला अध्ययन केंद्र की ओर से ‘‘कंटेम्परेरी रिलेवेन्स आफ इंडियन नॉलेज सिस्टम एंड वूमेन्स इम्पावरमेंट’’ विषय दो दिवसीय सेमिनार प्रारम्भ हुआ। मुख्य वक्ता के तौर पर लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रो. श्वेतांशू भूषण ने अपने विचार रखे।

मुख्य वक्ता प्रो. श्वेतांशू भूषण ने कहा कि भारतीयों की समस्याओं का समाधान भारतीय ज्ञान परम्परा के आधार पर ही संभव है। भारतीय ज्ञान के उद्गम और उसके विस्तार में सदियों से ही महिलाओं का अहम योगदान रहा है। भारतीय ज्ञान परम्परा का उद्गम वेदों और हिंदू धर्म ग्रंथों से है। ज्ञान परम्परा को दो भागों में बांटा गया है। प्रथम है भारतीय ज्ञान परम्परा और द्वितीय है माडर्न (आधुनिक) नॉलेज सिस्टम। मानव के जीवन और उसके विकास क्रम में ज्ञान परम्परा का अहम योगदान है। माडर्न (आधुनिक) नॉलेज सिस्टम 17वीं शताब्दी में जन्मा है लेकिन भारतीय ज्ञान परम्परा सदियों पुरानी है। सिंधु घाटी सभ्यता का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में इसके विस्तार के प्रमाण मिलते हैं। भारत में श्रुति और स्मृति परम्परा, दोनों का प्रयोग भारतीय ज्ञान परम्परा को आत्मसात करने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए किया गया है।

उन्होंने आगे कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में कई दार्शनिक और विचारक हुए हैं, जिन्होंने भारतीय ज्ञान को आगे विस्तारित किया। भारत का इतिहास महान विदुषी महिलाओं से भरा पड़ा है जिन्होंने भारतीय समाज का न सिर्फ निर्माण किया है बल्कि आगे भी बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में 16 संस्कार का प्रावधान है। जहां बालकों को गर्भ में संस्कारित करना शुरू कर दिया जाता है। नैतिक सीख और बदलाव जीवन भर साथ चलने वाली प्रक्रिया है, जिसका प्रारम्भ एक मां के रूप में महिला से ही होता है। उन्होंने कहा कि परम्पराएं समय के अनुसार बदलती रहेंगी लेकिन हमें वैचारिक रूप से सही और गलत में विभेद करना सीखना होगा।

अध्यक्षीय भाषण में कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव ने सावित्रीबाई फुले, ऐनी बेसेंट, और सरोजनी नायडू के जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान और समाज सुधारों में महिलाओं का योगदान काफी अहम रहा है। स्वामी विवेकानंद ने 150 वर्ष पहले ही कहा था कि शिक्षित करके की महिलाओं को सशक्त किया जा सकता है। लम्बे संघर्ष के बाद 1950 से सभी महिलाओं को मताधिकार मिले। उन्होंने प्रश्न उठाया कि जब महिलाओं को मतदान करने के अधिकार ही नहीं थे तो अन्य अधिकारों के बारे में सोचना ही बेइमानी है। उन्होंने बहुविवाह से होने वाली महिलाओं की दुर्दशा का भी जिक्र किया। कहा कि महिलाओं में शिक्षा का स्तर बढ़ने के बाद उन्होंने सम्पत्ति सहित सभी संवैधानिक अधिकार ग्रहण किए। उन्होंने कहा कि एक शिक्षित और सशक्त मां एक बेटी को सशक्त बना सकती है। जय शंकर प्रसाद की कविता ‘‘क्या कहती हो, ठहरो नारी’’ के माध्यम से उन्होंने समाज में महिलाओं के महत्व और संघर्षों को बयां किया। उन्होंने कहा कि पितृ सत्तामक समाज की सीमाएं अब टूट चुकी हैं, खेलों में भी महिलाएं बढ़-चढ़कर प्रदर्शन कर रही हैं। सरकार ने भी महिला सशक्तीकरण के अभियान चलाकर सराहनीय कार्य किए हैं।

इससे पूर्व, महिला अध्ययन केंद्र की निदेशक प्रो. जया कपूर ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि महिला अध्ययन केंद्र समय-समय पर कार्यशालाएं, प्रशिक्षण और शैक्षणिक गतिविधियां करवाता रहता है। केंद्र का उद्देश्य महिलाओं का सर्वांगीण विकास है। इसके बाद उन्होंने सेमिनार की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह सेमिनार भारतीय ज्ञान परम्परा की समकालीन प्रासांगिकता और महिलाओं के सशक्तीकरण पर मंथन का केंद्र बनेगा। मंच संचालन छात्रा साक्षी अरोड़ा ने तथा महिला अध्ययन केंद्र के शिक्षक डॉ. गुरपिंदर ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र