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नई दिल्ली, 26 नवंबर (हि.स.)। भारत में दुर्लभ खनिजों का विश्व का तीसरा सबसे बड़ा भंडार लगभग 69 लाख टन का है जिससे हर साल करीब 20 हजार टन पर्मानेंट मैग्नेट का निर्माण किया जा सकता है, जो देश की जरूरत का करीब पांच गुना है। इस दिशा में सरकार ने देश काे पांच साल के भीतर न सिर्फ आत्मनिर्भर बनाने बल्कि दुनिया के अन्य देशों को निर्यात करने की क्षमता विकसित करने की योजना बनायी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को यहां केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में अगली पीढ़ी के विनिर्माण को बल देने के लिए देश को सेमीकंडक्टर मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के बाद दुर्लभ खनिजों से बनने वाले पर्मानेंट मैग्नेट के निर्माण में भी आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए 7280 करोड़ रुपये के निवेश वाली रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट (आरईपीएम) स्कीम को मंजूरी दी। दुर्लभ खनिजों का उपयोग अत्याधुनिक रक्षा उपकरण, इलैक्ट्रिक वाहन, नवीकरणीय ऊर्जा, अंतरिक्ष यान एवं कृत्रिम उपग्रह आदि बनाने में होता है। वैश्विक राजनीति में दूरगामी महत्व के इस निर्णय से दुनिया की बड़ी ताकतों के बहुमूल्य संसाधनों के नाम पर भारत को ब्लैकमेल करने की ताकत निष्प्रभावी हो जाएगी।
वर्तमान में भारत की जरूरत करीब 4000 टन आरईपीएम की पड़ रही है जिसकी भरपाई आयात से होती है। भारत अभी दुर्लभ खनिज एवं आरईपीएम की आपूर्ति के लिए चीन, जापान, विएतनाम, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा एवं अमेरिका से खरीद कर रहा है। कैबिनेट द्वारा आज लिये गये फैसले के अनुसार देश में क्रिटिकल मिनरल मिशन के अंतर्गत राजस्थान महाराष्ट्र एवं गुजरात के पहाड़ी इलाकों में भारी दुर्लभ खनिजों एवं समुद्र तट पर रेत से हल्के दुलर्भ खनिजों के उत्खनन के बाद उनसे आरईपीएम बनाने के लिए देश में 1200 टन क्षमता वाले पांच संयंत्र स्थापित किये जाएंगे, जिनकी कुल क्षमता 6000 टन प्रतिवर्ष होगी। इन संयंत्रों से तीन से चार साल में उत्पादन शुरू होने की संभावना है और पांच साल के भीतर ही भारत इस मामले में आत्म निर्भर हो जाएगा।
इलेक्ट्रिक वाहनों, नवीकरणीय ऊर्जा, औद्योगिक अनुप्रयोगों और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स की तेज़ी से बढ़ती मांग को देखते हुए भारत में आरईपीएम की खपत 2025 से 2030 में बढ़कर दोगुनी होने की संभावना है। इस पहल से स्थापित होने वाली एकीकृत आरईपीएम विनिर्माण इकाइयां न केवल रोज़गार सृजन करेंगी बल्कि इससे देश की आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और 2070 तक वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के बीच संतुलन बनाने एवं नेट ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने की देश की प्रतिबद्धता को बल मिलेगा।
जानकार सूत्रों के अनुसार देश में भारी एवं हल्के दोनों प्रकार के दुर्लभ खनिजों की कुल अनुमानित उपलब्धता लगभग 69 लाख टन है जो विश्व में तीसरा सबसे बड़ा भंडार है जिसमें लीथियम शामिल नहीं है। दुर्लभ खनिजों की इस मात्रा से हर साल 20 हजार टन आरईपीएम बनाना संभव होगा जो मौजूदा आवश्यकता का पांच गुना है।
सूत्रों का मानना है कि हाल ही में चीन एवं अमेरिका के बीच टैरिफ वॉर में सबसे अहम मुद्दा दुर्लभ खनिजों एवं परमानेंट मैग्नेट की आपूर्ति था और दोनों देशों के बीच समझौता भी इसी मुद्दे के सुलझने के बाद हो पाया। अमेरिका के टैरिफ प्रहार से भारत भी अछूता नहीं रहा। यह एक खतरे की घंटी है लिहाजा सरकार ने दुर्लभ खनिजों, परमानेंट मैग्नेट और सेमीकंडक्टर तीनों क्षेत्रों में जल्द से जल्द आत्मनिर्भरता हासिल करने की मुहिम पर जोर लगा दिया है। सूत्रों ने कहा कि अगले पांच साल में भारत करीब करीब इन तीनों मामलों में आत्मनिर्भर हो चुका होगा। इस प्रकार से दुनिया के किसी भी ताकतवर देश के पास भारत को किसी भी मुद्दे पर ब्लैकमेल करने की शक्ति नहीं बचेगी और 2047 तक भारत को विकसित बनाने के मिशन में कोई बड़ी बाधा नहीं आएगी।
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हिन्दुस्थान समाचार / सचिन बुधौलिया