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कोलकाता, 25 नवम्बर (हि. स.)। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि पिता की मौत के बाद यदि किसी बेटी का तलाक होता है तो उसे पारिवारिक पेंशन का लाभ नहीं दिया जा सकता। न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी सेन की खंडपीठ ने सोमवार को यह आदेश पारित किया जिसे मंगलवार को ऑनलाइन अपलोड किया गया।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता चंद्रेयी आलम ने तर्क दिया कि उनकी मुवक्किल आर्थिक रूप से कमजोर है और आश्रित बेटी होने के नाते उसे अपने दिवंगत पिता की पारिवारिक पेंशन मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि महिला की वैवाहिक स्थिति बिगडने के बाद उसका जीवन निर्वाह कठिन हो गया है, इसलिए उसे पेंशन का अधिकार दिया जाना चाहिए।
खंडपीठ ने हालांकि इस दलील से असहमति जताते हुए कहा कि पिता की मौत के समय महिला विवाहित थी और उसके तलाक की प्रक्रिया उनके जीवनकाल में शुरू नहीं हुई थी। इसलिए कानूनी प्रावधानों के अनुसार वह पारिवारिक पेंशन की हकदार नहीं ठहराई जा सकती।
अदालत ने इस संदर्भ में केन्द्रीय सरकार के साल 2013 के उस आदेश का उल्लेख किया जिसमें स्पष्ट किया गया है कि यदि बेटी का तलाक माता पिता दोनों की मृत्यु के बाद होता है तो वह पारिवारिक पेंशन के लिए पात्र नहीं होगी। साथ ही अदालत ने साल 2017 के केएटी के उस फैसले का भी हवाला दिया जिसमें यह कहा गया था कि यदि तलाक की प्रक्रिया माता या पिता में से किसी एक के जीवनकाल में प्रारंभ हुई हो और बेटी की आय पेंशन राशि से कम हो तो उसे लाभ दिया जा सकता है।
अदालत ने माना कि वर्तमान मामले में न तो तलाक की प्रक्रिया पिता के जीवित रहते शुरू हुई और न ही पूर्व के प्रासंगिक आदेशों के अनुरूप पेंशन के अधिकार का कोई कानूनी आधार बनता है। इसलिए याचिका खारिज कर दी गई।
प्रकरण के समापन के साथ अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि पारिवारिक पेंशन के दावों में वैवाहिक स्थिति और उसके समयकाल का निर्धारण अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसके बिना लाभ दिए जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर