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रांची, 25 नवंबर (हि.स.)। झारखंड सरकार द्वारा नई फिल्म नीति बनाने के आश्वासन के बावजूद पांच माह बीत जाने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होने से स्थानीय कलाकारों में नाराज़गी बढ़ गई है। इसको लेकर झारखण्ड कलाकार आंदोलन संघर्ष समिति ने कड़ी आपत्ति जताई है और चेतावनी दी है कि यदि दिसंबर तक नई फिल्म नीति नहीं बनाई गई, तो आगामी विधानसभा सत्र के दौरान विधानसभा का घेराव और उग्र आंदोलन किया जाएगा।
समिति की महासचिव रंजू मिंज ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि झारखंड फिल्म नीति-2015 के तहत स्थानीय झॉलीवुड कलाकारों को नजरअंदाज किया गया, जबकि बाहरी कलाकारों—जैसे अनुपम खेर, महेश भट्ट को करोड़ों रुपये का अनुदान दिया गया, जो अनुचित है।
उन्होंने बताया कि झारखंड की भाषाओं, खोरठा, संथाली की कई फिल्में बनकर तैयार हो चुकी हैं, जिन पर लगभग 5 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हुआ है। यदि नई फिल्म नीति लागू कर स्थानीय भाषा की फिल्मों को झारखंड के सभी सिनेमाघरों में अनिवार्य प्रदर्शन का नियम नहीं बनाया गया, तो फिल्म निर्माताओं को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा।
रंजू मिंज ने कहा कि तीन माह पहले झारखंड के कलाकारों और फिल्मकारों ने नई फिल्म नीति की मांग को लेकर सड़क पर आंदोलन किया था। इसके बाद राज्य के कला एवं संस्कृति मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू ने दो बैठकें कर तीन माह के भीतर नई झारखंड फिल्म नीति-2025 लाने का वादा किया था। लेकिन पांच माह बीतने के बावजूद न तो कोई पहल हुई और न ही कोई आधिकारिक घोषणा, जिससे फिल्म बिरादरी में आक्रोश है।
झारखंड के फिल्मकारों और क्षेत्रीय कलाकारों ने राज्य सरकार से फिल्म उद्योग के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण मांगें रखी हैं। कलाकारों का कहना है कि झारखंड की क्षेत्रीय भाषाओं नागपुरी, खोरठा, संथाली, हो, मुंडा, खड़िया, कुरुख, कुरमाली और पंचपरगनिया में बनने वाली फ़िल्मों को सरकार द्वारा अनुदान दिया जाना चाहिए, ताकि स्थानीय भाषा और संस्कृति को बढ़ावा मिल सके।
फिल्मकारों ने यह भी मांग की है कि झारखंड फिल्म विकास निगम में उपरोक्त क्षेत्रीय भाषाओं के जानकार कलाकारों, फिल्मकारों तथा बुद्धिजीवियों को सदस्य बनाया जाए, जिससे नीतियों और निर्णयों में स्थानीय कलाकारों की सहभागिता सुनिश्चित हो सके।
इसके अलावा, कलाकारों ने राज्य में फिल्म सिटी के निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया है। उनका कहना है कि फिल्म सिटी बनने से न केवल स्थानीय कलाकारों को अवसर मिलेंगे, बल्कि बाहरी प्रोडक्शन हाउस भी झारखंड में शूटिंग के लिए आकर्षित होंगे।
कलाकारों की एक महत्वपूर्ण मांग यह भी है कि झारखंड की क्षेत्रीय भाषाओं की फ़िल्मों को राज्य के सभी सिनेमा घरों में अनिवार्य रूप से प्रदर्शित किया जाए, ताकि स्थानीय दर्शक अपनी भाषा की फिल्मों को बड़े पर्दे पर देख सकें।
साथ ही, फिल्मकारों ने सरकार से आग्रह किया है कि एफटीआई की तर्ज पर झारखंड में भी फिल्म मेकिंग की पढ़ाई के लिए एक उन्नत संस्थान खोला जाए, जिससे नई पीढ़ी को तकनीकी और प्रोफेशनल ट्रेनिंग मिल सके।
कलाकारों का कहना है कि यदि इन मांगों पर सरकार गंभीरता से कदम उठाती है, तो झारखंड का “झॉलीवुड” उद्योग नई ऊंचाइयों को छू सकता है।---------------
हिन्दुस्थान समाचार / Manoj Kumar