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सिवनी\बालाघाट 24 नवंबर (हि.स.)। मध्य भारत के नक्सल प्रभावित इलाकों में सक्रिय नक्सलियों ने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों की कार्रवाई (ऑपरेशन) को तत्काल प्रभाव से रोकने की मांग की है। नक्सल संगठन ने कहा है कि यदि सरकार सुरक्षा अभियान 15 फरवरी 2026 तक बंद रखती है, तो वे भी अपनी सशस्त्र गतिविधियों, विशेषतः पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) की कार्रवाइयों को इसी अवधि तक स्थगित रखेंगे। पत्र 22 तारीख का लिखा हुआ है और संबोधन में इन तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों का जिक्र किया गया है।
नक्सलियों के संगठन का दावा है कि वे शांति के लिए तैयार हैं और यदि सरकार सहयोग करे, तो 15 फरवरी 2026 के बाद हथियार छोड़ने पर भी विचार किया जा सकता है। नक्सली संगठन की एक विशेष कमेटी, जिसे एमएमसी स्पेशल जोनल कमेटी कहा जाता है ने यह पत्र जारी किया है। बताया गया है कि समिति के प्रवक्ता अनंत की ओर से भेजे गए पत्र में तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को स्पष्ट रूप से बताया गया है कि वे सुरक्षा बलों की कार्रवाई रोकने के बदले अपने स्तर पर एकतरफा युद्धविराम लागू करेंगे।
एमएमसी ने अपने पत्र में पिछले वर्षों में हुए लगातार ऑपरेशनों का उल्लेख करते हुए कहा है कि इन्हीं अभियानों के कारण संघर्ष और बढ़ा है तथा ग्रामीण आदिवासी जनता सबसे अधिक प्रभावित हुई है। उनके अनुसार शांतिपूर्ण समाधान के लिए आवश्यक है कि पहले हथियारों की आवाज बंद हो और बातचीत की शुरुआत हो। प्रवक्ता द्वारा जारी एक कथित प्रेस नोट में यह स्पष्ट किया गया है कि नक्सली संवाद के लिए तैयार हैं, परंतु इसके लिए उन्होंने कुछ शर्तें भी रखी हैं, जैसे कि सुरक्षा बलों के ऑपरेशन तुरंत रोके जाएँ। नए कैंप न बनाए जाएँ। पुराने कैंपों में जवान सिर्फ तैनात रहें, सक्रिय अभियान न चलाएँ। पत्रकारों और जनप्रतिनिधियों की मध्यस्थता स्वीकार की जाए।
नक्सलियों का कहना है कि यदि क्षेत्र में नए कैंप बनते हैं या अभियान जारी रहता है तो शांति प्रक्रिया बाधित होगी और वे अपनी सशस्त्र गतिविधियाँ रोक नहीं पाएंगे। संगठन का यह भी तर्क है कि उनके द्वारा युद्धविराम की यह घोषणा संघर्ष को खत्म करने की दिशा में पहला कदम है। वे चाहते हैं कि सरकार भी इस अवसर को समझे और मौका दे, जिससे पहाड़ों और जंगलों में बंदूकें चुप हो सकें।
इस पत्र को लेकर प्रशासनिक स्तर पर अब तक किसी प्रकार का आधिकारिक निर्देश जारी नहीं किया गया है। इस मामले में संपर्क करने पर सिवनी जिले के पुलिस अधीक्षक सुनील मेहता ने बताया कि नक्सलियों के पत्र के संबंध में शासन-प्रशासन से अब तक कोई दिशा-निर्देश प्राप्त नहीं हुए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस और सुरक्षा बल हमेशा सरकार के आदेश और नीति के अनुरूप ही कार्य करते हैं। उधर, सोमवार को सरकारी तंत्र की चुप्पी यह संकेत भी हो सकती है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए उच्च स्तर पर विचार-विमर्श जारी है। नक्सलियों की ओर से पहली बार इतनी स्पष्ट और समय-सीमा निर्धारित शर्तों के साथ युद्धविराम और संवाद का प्रस्ताव सामने आया है, इसलिए इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
उल्लेखनीय है कि भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें लंबे समय से नक्सल समस्या को समाप्त करने की दिशा में कार्य कर रही हैं। कई बार प्रयास किए जाने के बावजूद बातचीत की पहल सफल नहीं हो सकी। ऐसे में यह प्रस्ताव संघर्ष के अंत की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है। इससे ये भी संकेत मिल रहा है कि लगातार की सैन्य कार्रवाईयों से नक्सली कमजोर हो रहे हैं। हालाँकि यह भी हो सकता है कि नक्सलियों द्वारा युद्धविराम का यह निर्णय रणनीतिक हो, जिसे जांचना और परखना आवश्यक है। पिछली घटनाएँ बताती हैं कि ऐसे प्रस्तावों के पीछे कई बार छिपी हुई मंशा भी होती है। इसलिए सरकार किसी भी निर्णय को सावधानी और ठोस खुफिया जानकारी के आधार पर ही लेगी।
हिन्दुस्थान समाचार / रवि सनोदिया