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उज्जैन, 21 नवंबर (हि.स.)। मध्य प्रदेश के उज्जैन में भारतीय ज्ञानपीठ में चल रही सद्भावना व्याख्यानमाला के पांचवें दिन शुक्रवार को मुख्य वक्ता के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य की शुल्क नियामक समिति के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति अनिल शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहाकि एआई के द्वारा न्यायिक कार्याे को करने में सावधानी रखना होगी। न्याय केवल कागज़ों के आधार पर नहीं होता। यह मानवीय भावनाओं,परिस्थितियों और व्यवहार को समझने की प्रक्रिया है।
शुक्ला ने कहाकि अदालत में गवाही का मतलब सिर्फ बोले गए शब्द नहीं होता। गवाह की आवाज़ का उतार-चढ़ाव, उसके चेहरे के भाव, बोलने का तरीका, आत्मविश्वास या झिझक,ये सब बातें तय करने में मदद करती हैं कि वह क्या कह रहा है और कैसे कह रहा है। इन मानवीय संकेतों को कोई मशीन पूरी तरह नहीं पकड़ सकती। इसलिए ऐसे मामलों में एआई इंसान की जगह नहीं ले सकता।
अध्यक्षता छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति गौतम चौरडिया ने की। उन्होने कहा कि उपभोक्तावाद के दौर में एआई के नियंत्रण ने उपभोक्ता संबंधी समस्याएँ उत्पन्न की हैं। जिन आवश्यकताओं से संबंधित सामग्री हम इंटरनेट पर खोजते हैं,उनसे जुड़े विज्ञापन तुरंत दिखाई देने लगते हैं। इसका अर्थ है कि हमारे मन, हमारी रुचि और हमारी पसंद को कैप्चर किया जा रहा है। यही एआई का वह पक्ष है जिस पर हमें अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
दीप प्रज्वलन पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश उदयसिंह बहरावत, बार एसोसिएशन उज्जैन के पूर्व अध्यक्ष अशोक यादव,विधिक सेवा प्राधिकरण के अधिवक्ता हरदयाल सिंह ठाकुर ने किया। अतिथि स्वागत संस्था प्रमुख युधिष्ठिर कुलश्रेष्ठ,अमृता कुलश्रेष्ठ ने किया।
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हिन्दुस्थान समाचार / ललित ज्वेल