तीन भाइयों को सूरज ढलते ही आंखों से कुछ नहीं दिखता, 15-15 रोटियां खा जाते हैं, हाथ-पैरों में हैं 13-13 अंगुलियां
-धारी गांव के तीन सगे भाई दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी से पीड़ित नैनीताल, 20 नवंबर (हि.स.)। नैनीताल जनपद के बेतालघाट विकासखंड के धारी गांव से एक अत्यंत विचित्र व दुरूह चिकित्सा प्रकरण सामने आया है, जहां एक ही परिवार के तीन सगे भाई जन्म से ही ऐसी अनूठी बी
‘लॉरेंस मून बेडिल सिंड्रोम’ नामक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी से जूझ रहे तीनों भाई।


-धारी गांव के तीन सगे भाई दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी से पीड़ित

नैनीताल, 20 नवंबर (हि.स.)। नैनीताल जनपद के बेतालघाट विकासखंड के धारी गांव से एक अत्यंत विचित्र व दुरूह चिकित्सा प्रकरण सामने आया है, जहां एक ही परिवार के तीन सगे भाई जन्म से ही ऐसी अनूठी बीमारी से ग्रस्त हैं, जिसके कारण सूरज ढलते ही इनकी आँखें काम करना बंद कर देती हैं और अंधेरे में चलना-फिरना लगभग असंभव हो जाता है। रोग के कारण इनके हाथ-पैरों में अतिरिक्त अंगुलियां विकसित हो गई हैं तथा इन्हें असामान्य रूप से तेज भूख लगती है। चिकित्सा जगत की भाषा में इन्हें जन्मजात ‘लॉरेंस मून बेडिल सिंड्रोम’ नामक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी बतायी गयी है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार 34 वर्षीय बालम जंतवाल और उनके दो भाई-29 वर्षीय गौरव तथा 25 वर्षीय कपिल की स्थिति एक सी है। दिन ढलते ही तीनों भाइयों की दृष्टि कम हो जाती है। बालम के दोनों हाथों में 13-13 एवं पैरों में 12-12, गौरव के हाथ-पैरों में 13-13 तथा कपिल के हाथ-पैरों में 12-12 अंगुलियाँ हैं। अतिरिक्त अंगुलियाँ होने से भी इन्हें सामान्य कार्य करने में भी परेशानी आती है। तीनों भाइयों को अत्यधिक भूख लगने की समस्या भी है, और प्रत्येक भाई एक बार में लगभग 15 रोटियाँ खा लेता है, जिससे दिहाड़ी मजदूरी पर आधारित परिवार पर भारी आर्थिक दबाव पड़ रहा है।

मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी के प्राचार्य डॉ. जीएस तितियाल के अनुसार इस ‘लॉरेंस मून बेडिल सिंड्रोम’ नामक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी बीमारी में आँखों की रॉड कोशिकाएँ काम करना बंद कर देती हैं, जिससे सांध्यकालीन दृष्टि नष्ट हो जाती है। यह पूर्णतः आनुवंशिक रोग है और इसका कोई स्थायी उपचार उपलब्ध नहीं है। वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गरमपानी के डॉ. गौरव कैड़ा के अनुसार इस बीमारी में अतिरिक्त अंगुलियाँ, हार्मोनल गड़बड़ी, मोटापा और त्वचा समस्याएँ भी सामान्यतः देखी जाती हैं।

तीनों भाइयों की मां सावित्री के अनुसार तीनों बच्चों का बचपन से ही उपचार चलता रहा। बालम के हृदय में 8 मिमी का छेद पाया गया था, जिसका उपचार कराने में परिवार की सारी जमा-पूंजी समाप्त हो गई। अन्य दोनों बेटों में भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ सामने आती रहीं। लगातार मानसिक व आर्थिक दबाव ने इनके पिता को तोड़ दिया और दो वर्ष पूर्व उनका निधन हो गया। परिवार को मिलने वाली 1500 रुपये की दिव्यांग पेंशन अत्यंत अल्प है और आवश्यकताओं के सामने नगण्य साबित हो रही है। वर्तमान में बालम बकरियां चराता है, गौरव एक निजी स्टोन क्रशर में दिहाड़ी मजदूर है और कपिल एक छोटे होटल में कार्य करता है, परंतु सूर्यास्त के बाद ये तीनों अकेले कोई कार्य नहीं कर पाते।

बीमारी, भुखमरी जैसी तेज भूख और आर्थिक कठिनाइयों का त्रिस्तरीय बोझ इन भाइयों व उनकी मां को निरंतर संघर्ष की स्थिति में बनाए हुए है। धारी क्षेत्र में रहने वाला यह परिवार प्रशासन व समाज दोनों से सहायता की अपेक्षा रखता है, ताकि तीनों भाइयों को चिकित्सा, पोषण एवं जीवन-निर्वाह संबंधी न्यूनतम सुविधा उपलब्ध हो सके।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी