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नई दिल्ली, 20 नवंबर (हि.स.)। विधानसभा से पारित विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय करने पर उच्चतम न्यायालय
की पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए बिल पर निर्णय के लिए समय-सीमा निश्चित नहीं की जा सकती है।
संविधान पीठ ने ये भी कहा कि उच्चतम न्यायालय
अनुच्छेद 143 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल कर राज्यपाल के पास लंबित विधेयकों को पारित घोषित नहीं कर सकता है। संविधान पीठ ने ये भी कहा कि राज्यपाल किसी बिल को विचार के लिए अनिश्चित समय तक अपने पास नहीं रोक सकते। संविधान पीठ ने कहा कि अगर राज्य विधानसभा की ओर से पारित विधेयक पर फैसला लेने में राज्यपाल काफी देर करते हैं तो उच्चतम न्यायालय
हस्तक्षेप कर सकता है और राज्यपाल को दिशा-निर्देश जारी कर सकता है। संविधान पीठ ने कहा कि राज्यपाल किसी विधेयक पर सहमति दे सकते हैं या उसे रोक कर विधानसभा को लौटा सकते हैं या उसे राष्ट्रपति को रेफर कर सकते हैं। संविधान पीठ ने कहा कि भारत के संघवाद में राज्यपालों को विधेयकों को लेकर विधायिका के साथ संवाद करना चाहिए और इसमें बाधा खड़े नहीं करना चाहिए।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मई में संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत उच्चतम न्यायालय
से राय मांगी थी। राष्ट्रपति ने पूछा था कि क्या कोर्ट यह तय कर सकता है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल को बिलों पर कब तक निर्णय लेना चाहिए। राष्ट्रपति ने अपने रेफरेंस में उच्चतम न्यायालय
से 14 सवाल रखे थे, जिनका जवाब उच्चतम न्यायालय
से मांगा गया था। यह सवाल मुख्य रूप से अनुच्छेद 200 और 201 से जुड़े हैं, जिनमें राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों का जिक्र है।
संविधान पीठ ने रेफरेंस पर 11 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान पीठ ने इस मामले पर कुल 10 दिन सुनवाई की थी। संविधान पीठ ने 22 जुलाई को केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था। संविधान पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे।
दरअसल, उच्चतम न्यायालय
की दो सदस्यीय पीठ ने 8 अप्रैल को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों पर राज्यपाल को फैसला लेने के लिए दिशा-निर्देश जारी किया था, जिसके मुताबिक राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए किसी विधेयक पर फैसला लेने या राज्यपाल के पास भेजने के लिए अधिकतम एक महीने के अंदर फैसला लेना होगा। दो सदस्यीय पीठ के दिशा-निर्देश के मुताबिक अगर राज्यपाल विधेयक को राज्य सरकार की सलाह के विपरीत राष्ट्रपति को सलाह के लिए रखते हैं तो उस पर भी अधिकतम तीन माह के अंदर फैसला लेना होगा। दो सदस्यीय पीठ ने अपने दिशा-निर्देश में कहा था कि अगर राज्य विधानसभा किसी विधेयक को दोबारा पारित कराकर राज्यपाल को भेजती है तो उस पर अधिकतम एक महीने में फैसला करना होगा। दो सदस्यीय पीठ के इस फैसले के बाद राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय
से रेफरेंस के जरिये सवाल पूछा था।
हिन्दुस्थान समाचार/संजय
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हिन्दुस्थान समाचार / अमरेश द्विवेदी