हृदयनारायण दीक्षित
कोई भी घटना अप्रत्याशित नहीं होती। सम्यक आकलन नहीं होता। हमारी नासमझी और व्यापक अनुभवों का उचित मूल्यांकन नहीं होता। हम अनुमान करते हैं। प्रमाणों की सहायता लेते हैं, लेकिन नियति प्रमाणों की परवाह नहीं करती। प्रमाणों के आकलन की छ
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