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असमिया संगीत के बादशाह और करोड़ों दिलों की धड़कन जुबीन गर्ग अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ और कलाकारी आज भी गूंज रही है। सिंगापुर में 19 सितंबर को तैराकी के दौरान हुए हादसे में उनका निधन हो गया था। इस दर्दनाक घटना के एक महीने बाद उनकी आखिरी फिल्म 'रोई रोई बिनाले' सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है, और यह रिलीज अपने आप में एक भावनात्मक श्रद्धांजलि बन गई है।
पूरे देश में जुबीन के नाम की गूंज
'रोई रोई बिनाले' भारत के 46 शहरों में एक साथ रिलीज हुई है और इसे 800 से अधिक स्क्रीन मिली हैं। फिल्म के हर शो में दर्शकों की आंखें नम हैं, तालियाँ गूंज रही हैं और परदे पर दिख रहे जुबीन को देखकर हर कोई भावुक हो रहा है। कई थिएटरों में दर्शक फिल्म शुरू होने से पहले खड़े होकर उन्हें श्रद्धांजलि देते नजर आए। असम में फिल्म को लेकर जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है। राज्य के लगभग 80 सिनेमाघरों में 'रोई रोई बिनाले' रिलीज की गई है और कई अन्य शो रद्द कर दिए गए ताकि यह फिल्म हर दर्शक तक पहुंच सके। इतिहास में पहली बार किसी असमिया फिल्म का शो सुबह 4:25 बजे रखा गया। इतना ही नहीं, जगीरोड के गणेश टॉकीज और नलबाड़ी के तिहू गांधी भवन जैसे वर्षों से बंद पड़े सिनेमाघरों को इस फिल्म की वजह से फिर से खोला गया।
जुबीन का 19 साल पुराना सपना
यह फिल्म जुबीन के जीवन का सपना थी। उन्हें 'रोई रोई बिनाले' पर काम शुरू किए 19 साल हो चुके थे। लंबे समय से वे इस कहानी को बड़े पर्दे पर लाना चाहते थे। अपने निधन से कुछ ही दिन पहले उन्होंने फिल्म की शूटिंग पूरी की थी। इस फिल्म का निर्देशन राजेश भुयान ने किया है। हर फ्रेम में जुबीन का जुनून और समर्पण झलकता है।
जांच जारी, लेकिन जुबीन अमर रहेंगे
जुबीन गर्ग के अचानक निधन ने पूरे देश को झकझोर दिया था। असम पुलिस की एसआईटी टीम इस हादसे की जांच में जुटी है, लेकिन उनके प्रशंसकों के लिए अब यह फिल्म ही उनकी स्मृति का सबसे खूबसूरत प्रतीक बन गई है। 'रोई रोई बिनाले' केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि जुबीन की आखिरी रागिनी है। जिसे लाखों दिलों ने अश्रुपूरित आंखों से सुना और सहेजा।
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हिन्दुस्थान समाचार / लोकेश चंद्र दुबे