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नई दिल्ली, 31 अक्टूबर (हि.स.)। उच्चतम न्यायालय
ने कहा है कि अपने मुवक्किल को कानूनी सेवा दे रहे वकील को जांच एजेंसियां मनमाने तरीके से पूछताछ के लिए समन नहीं भेज सकती हैं। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि समन उन्हीं मामलों में भेजा जा सकता है, जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 के अपवादों में आते हैं।
कोर्ट ने कहा कि वकीलों को समन सिर्फ उन्हीं मामलों में भेजे जा सकते हैं, जहां मुवक्किल ने वकील से किसी आपराधिक कृत्य में सहयोग मांगा हो। कोर्ट ने साफ किया कि वकील को समन एसपी रैंक के अधिकारी की अनुमति से ही भेजा जा सकता है और वकील इस समन को कोर्ट में चुनौती दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि दूसरे मामलों में मुवक्किल की ओर से दिए गए दस्तावेज और जानकारी को सौंपने के लिए वकील से नहीं कहा जा सकता है। उच्चतम न्यायालय ने ये भी कहा कि इन-हाउस वकीलों को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 के तहत सुरक्षा नहीं मिलेगी, क्योंकि वे कोर्ट में प्रैक्टिस नहीं करते हैं।
उच्चतम न्यायालय ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई शुरु की थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि किसी मामले से जुड़े वकील को पुलिस या जांच एजेंसियों की ओर से पूछताछ के लिए बुलाना वकालत की पेशे की स्वायत्तता को कमजोर करेगा।
दरअसल, उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ वकील अरविंद दातार को ईडी ने समन जारी किया था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समन की विभिन्न बार एसोसिशंस ने आलोचना की थी। इस मामले पर हुए हंगामे के बाद ईडी ने समन वापस ले लिया था। ईडी ने वरिष्ठ वकील प्रताप वेणुगोपाल को भी नोटिस जारी किया था। इसकी भी आलोचना होने पर ईडी ने समन वापस ले लिया था। बाद में ईडी ने दिशा-निर्देश जारी कर कहा था कि किसी भी वकील को नोटिस जारी करने से पहले ईडी के डायरेक्टर से अनुमति ली जाए।
हिन्दुस्थान समाचार/संजय
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हिन्दुस्थान समाचार / अमरेश द्विवेदी